सत्यशोधक समाज ने कैसे ब्राह्मणवादी व्यवस्था को दी चुनौती

सावित्री बाई फुले
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दलित और महिला शिक्षा विरोधी बाल गंगाधर तिलक की हेकड़ी निकालने वाले महान संत महात्मा ज्योतिबा फुले को कौन नहीं जानता…दलित उत्थान और सामाजिक परिवर्तन के लिए उठाए गए उनके कदम आज भी पग-पग पर हमें गौरवान्वित करते हैं…तिलक नहीं चाहते थे कि महिलाएं समाज में आगे बढ़ें लेकिन महात्मा फुले ने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले के साथ मिलकर महिलाओं के लिए स्कूल खोल दिया था… आज से करीब 146 साल पहले उन्होंने शूद्रों और अतिशूद्रों में सम्मान पाने की अलख जगाई थी…इसके साथ ही महात्मा फुले ने समाज में दलितों की स्थिति संवारने के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी, जिसका काफी विरोध भी हुआ था….

सत्यशोधन समाज की स्थापना

फुले ने शूद्रों और अतिशूद्रों को जाति व्यवस्था से मुक्ति पाने के लिए एकजुट होने और आधुनिक ज्ञान प्राप्त करने की सलाह दी। अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर उन्होंने कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की। सावित्रीबाई फुले को महिलाओं के लिए पहला विद्यालय स्थापित करने के लिए जाना जाता है. वहीं महात्मा फुले को हमेशा ही उनके संघर्ष और सत्यशोधक समाज के लिए याद किया जाता है। महात्मा फुले ने 24 सितंबर 1873 को महाराष्ट्र के पुणे में सत्य शोधक समाज की स्थापना की…

सत्यशोधक समाज का सर्वोच्च उद्देश्य दलित जातियों को शिक्षित करना था। शूद्रों और अतिशूद्रों को ब्राह्मणों के चंगुल से मुक्त कराना था और उनमें चेतना पैदा करना था ताकि ब्राह्मण, शूद्रों और अतिशूद्रों का अपनी इच्छानुसार उपयोग न कर सकें। वहीं सत्यशोधक समाज को गैर-ब्राह्मण स्वरूप देने के लिए ज्योतिबा फुले ने सत्यशोधक समाज में उच्च वर्ग, कुलीन वर्ग, नौकरशाहों और ब्राह्मणों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था। केवल शूद्र समुदाय के लोग ही सत्यशोधक समाज का हिस्सा हो सकते थे। लेकिन ज्योतिबा इस बात के भी पक्षधर थे कि आपकी लड़ाई में शामिल होने वाले किसी भी व्यक्ति की जाति न पूछी जाए।

सामाजिक परिवर्तन

आपको बता दें कि ज्योतिबा फुले ने सामाजिक परिवर्तन आंदोलन को संगठित करने के लिए 24 सितंबर, 1873 को ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की। उस समय समाज सुधारक होने का दावा करने वाले कई संगठन सक्रिय थे। ‘ब्रह्म समाज’ (राजा राम मोहन राय), ‘प्रार्थना समाज’ (केशव चंद्र सेन), पुणे सार्वजनिक सभा (महादेव गोविंद रानाडे) इत्यादि उनमें प्रमुख थे। ये सभी लोग  चाहते थे कि समाज में जाति व्यवस्था बनी रहे लेकिन उसका चेहरा उतना क्रूर और अमानवीय न हो।

कोई भी संगठन या आंदोलन तभी तेजी से फैलता है और वैधता प्राप्त करता है जब उसे राजनीतिक समर्थन मिलता है। ऐसे ही सत्यशोधक समाज को कोल्हापुर के राजा शाहूजी महाराज से पूरा समर्थन मिला, जो मानते थे कि पिछड़े लोगों का उत्थान राजनीतिक शक्ति के माध्यम से ही संभव है। शाहूजी महाराज ने अपने शासन में पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण व्यवस्था लागू की थी और महिलाओं की शिक्षा में योगदान दिया था। सत्यशोधक समाज को मराठा कुनबी, माली, कोली जैसी कृषि जातियों का मजबूत समर्थन मिला, जिससे समाज को जन-जन तक पहुंचने में मदद मिली।

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