Kuyili: एक दलित महिला कमांडर की अनकही और अनसुनी कहानी

Kuyili
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भारत के इतिहास में महिलाओं के योगदान को अक्सर दरकिनार किया गया है या फिर उन्हें इतिहास में पन्नों में वो जगह नहीं दी गई है, जिसकी वो योग्य थीं. शायद यही वजह है कि आजादी के 75 सालों के बाद भी हम गिनी चुनी महिला वीरांगनाओं की कथा से ही परिचित हैं. आजादी की लड़ाई में महिलाओं के योगदान को तो भुलाया ही गया, खासकर दलित और आदिवासी महिलाएं भी अपना सर्वस्व अर्पण करने के बाद भी पुरुषवादी मानसिकता के नीचे दबी रह गईं. इस लेख में  हम आपको ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने वाली पहली भारतीय महिला के बारे में बताएंगे.

भारत के इतिहास में महिलाओं के योगदान

कुयिली तमिलनाडु की एक अनुसूचित जाति अरिंधतियार से तालुक्क रखती थी. उनका परिवार भी अपने साहस के लिए पूरे गांव में मशहूर था. ऐसे में कुयिली के भीतर भी साहस कूट कूटकर भरा हुआ था. कुयिली की माता की मृत्यु के बाद उनका परिवार शिवगंगा की राजधानी में आकर बस गया, जहां वेलु नचियार का शासन था. कुयिली के पिता पेरियमुदन वहां मोची का काम कर अपना गुज़ारा करने लगे और छोटी कुयिली को उसकी मां की वीरता की कहानियां सुनाकर बड़ा करने लगे. पेरियमुदन जल्द ही शाही मोची बन गए और रानी के लिए जूते बनाने लगे, जिसकी वजह से उन्हें और कुयिली को रोज़ महल में आने-जाने की इजाज़त मिल गयी थी. इस तरह रानी वेलु नचियार कुयिली से रोज़ मिलने लगी और दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई.

कुयिली ने बहुत जल्द ही कई तरह के हथियार चलाना सीख लिए और युद्ध कलाओं में भी पारंगत हो गयी. अब वो रानी की सबसे करीबी इंसान बन चुकी थी. इसी तरह कई बार कुयिली ने रानी की जान भी बचाई. एक रात जब रानी सो रही थी तो एक हत्यारा उनके शयन कक्ष में घुस आया और उन्हें मारने की कोशिश की. कुयिली भी वहीं सो रही थी. उस रात कुयिली ने अपनी जान पर खेलकर रानी की जान बचाने में सफल हुई थी. ऐसा करते हुए वह खुद बुरी तरह से घायल हुई थी. खटपट की आवाज से जब रानी की नींद खुली तो उन्होंने कुयिली को घायल पाया. उन्होंने अपनी साड़ी फाड़कर कुयिली की मरहम-पट्टी की.

एक और बार जब कुयिली को पता चला कि उनके अपने गुरु ही रानी को मारने का षड्यंत्र कर रहे हैं तो इस बात की खबर लगते ही उन्होंने खुद अपने गुरु की हत्या कर दी. यह देखकर रानी बहुत प्रभावित हुई और कुयिली को अधिकारिक तौर पर अपना अंगरक्षक घोषित कर दिया. रानी वेलु नचियार से कुयिली के बीच नजदीकियों की बात ब्रिटिश शासकों तक पहुंच गई. वे चाहते थे कि रानी पर हमला और शिवगंगा की राजधानी पर कब्ज़ा करने में कुयिली उनकी मदद करे. उन्होंने पूरी कोशिश की कुयिली को अपने साथ शामिल करने की, पर वह टस से मस नहीं हुई.

जब ब्रिटिशों को किसी भी तरह से सफलता नहीं मिली तो उन्होंने शिवगंगा के दलित समुदाय पर हल्ला बोल दिया. निहत्थे दलितों को दिनदहाड़े बेरहमी से काटा जाने लगा ताकि अपने समुदाय के लोगों की हालत देखकर कुयिली अंग्रेज़ों से हाथ मिला ले.

जब रानी को यह बात पता चली, उन्होंने तुरंत ही  कुयिली को अपनी सेना के महिला पलटन का सेनापति बना दिया ताकि वह अपने लोगों की रक्षा के लिए ब्रिटिश ताकतों के ख़िलाफ़ लड़ सके. ऐसे में कुयिली इतिहास की पहली दलित महिला बनीं जिन्होंने सेना का नेतृत्व किया हो. अपने हिम्मत और शौर्य के लिए उनकी सेना में उन्हें ‘वीरतलपति’ (वीर नेता) और ‘वीरमंगई’ (वीरांगना) जैसे नामों से जाना जाने लगा.

18वीं सदी के दूसरे दौर में रानी वेलु नचियार ने मैसूर के टीपू सुल्तान, उनके पिता हैदर अली और शिवगंगा के मरुदु पांडियर भाईयों के साथ मिलकर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी. जिसमे  सेना के महिला पलटन का जिम्मा कुयिली के पास था. रानी के सेना में कुयिली के पिता पेरियमुदन भी शामिल थे. मक़सद था शिवगंगा किले को अंग्रेज़ों के कब्ज़े से मुक्त करवाना, क्योंकि यहीं से वो शिवगंगा के एक बड़े हिस्से पर कंट्रोल कर रहे थे. शिवगंगा किला हमेशा ब्रिटिश सैनिकों से घिरा रहता था और किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी. पूरे साल में सिर्फ़ एक ही दिन के लिए शिवगंगा किला बाहरवालों के लिए खुलता था और वह था नवरात्रि का आखिरी दिन. जब महिलाओं को विजयादशमी की पूजा करने के लिए किले के अंदर देवी राजराजेश्वरी अम्मा के मंदिर में जाने की अनुमति मिलती थी. सेनापति कुयिली ने इसी मौके का फ़ायदा उठाया और उसी आधार पर हमले की एक नई रणनीति बनाई.

कुयिली कैसे बनी वेलु नचियार की अंगरक्षक

1780 में विजयादशमी के दिन कुयिली अपनी पूरी पलटन के साथ शिवगंगा किले में घुस गई. पलटन की सारी महिलाएं भक्तों के वेश में थी और अपनी टोकरियों में उन्होंने फूल और प्रसाद के साथ अपने शस्त्र छिपाए थे. अंदर जाते ही कुयिली किले के उस कमरे में चली गईं जहां अंग्रेज़ों के सारे हथियार रखे हुए थे. इसके बाद उन्होंने वह किया जिसे आज की भाषा में ‘सुसाईड बॉम्बिंग’ कहते हैं.

चौंकाने वाली बात ये थी कि अपनी जान की परवाह किये बिना कुयिली ने पहले ही अपने सैनिकों से अपने शरीर पर बहुत सारा तेल और घी डलवा लिया था. कमरे में पहुंचते ही उन्होंने अपने हाथ में लिए दीपक से खुद को आग के हवाले कर दिया. आग से जलती हुई कुयिली ने हथियारों पर छलांग लगाई और सारे हथियारों के साथ उसका शरीर भी एक पल में भस्म हो गया. भारतीय इतिहास में पहली बार किसी ने हमले का यह तरीका अपनाया था.

अंग्रेज़ सैनिक वैसे भी युद्ध के लिए तैयार नहीं थे और सारे हथियार बर्बाद हो जाने के बाद उनके पास अपनी खुद की रक्षा का कोई विकल्प नहीं था. रानी वेलु नचियार की सेना ने उन्हें आसानी से हरा दिया और शिवगंगा किले पर जीत हासिल कर ली.

इसके साथ ही अपने असाधारण साहस और बलिदान के लिए कुयिली भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गईं. लेकिन बहुत लंबे समय तक उन्हें वो सम्मान नहीं मिला, जिसकी वो अधिकारी थीं. साल 2013 में तमिलनाडु की सरकार ने उनकी स्मृति को समर्पित एक स्मारक बनवाया था.

दुर्भाग्य से तमिलनाडु के बाहर बहुत कम लोग कुयिली के बारे में जानते हैं. हमारे इतिहास में महिलाओं, ख़ासकर दलित महिलाओं का अमूल्य योगदान रहा है. हमें ज़रूरत है इन सभी ऐतिहासिक चरित्रों के बारे में पढ़ने की और जानने की. इनकी वीरता को इतनी आसानी से भुलाया नहीं जा सकता.

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