किसी ने सही कहा है कि “स्त्री पैदा नहीं होती, स्त्री बनाई जाती है”. हमारे जातिवादी व्यवस्था और पितृसत्तात्मक समाज में रूढ़ीवादी रिवाजों से निकल कर अपने अधिकारों को लेना इतना आसान नहीं है. दलितों पर मनुवादियों ने अतीत में कितना कहर ढ़ाया, यह किसी से छिपा नहीं है. दलित पुरुषों की स्थिति दयनीय थी, ऐसे में आप दलित महिलाओं की स्थिति का अंदाजा स्वत: लगा सकते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जातिवादी व्यवस्था का विरोध करने वाली पहली दलित महिला कौन थी?
जांबाज दलित महिला
इस जांबाज दलित महिला का नाम था अन्नै मीनमबल शिवराज. हालात ऐसे हुए कि 26 दिसंबर 1904 को बर्मा के रंगून में जन्मी मीनमबल का परिवार तमिलनाडु आ गया. इनका परिवार भी शुरु से ही जातिगत भेदभाव के खिलाफ था. उनके परिवार में ज्यादातर लोग दलित नेता थे. जिसके चलते अन्नै मीनमबल को आंदोलन के संघर्षों के बारे में पहले से ही पता था. दलित पुरुष तो संघर्ष कर ही रहे थे लेकिन दलित महिलाओं की आवाज अभी भी दबी हुई ही थी.
समाज में दलित महिलाओं की दुर्दशा से मीनमबल का खून खौल उठता था.. इसी बीच मीनमबल अपना स्नातक पूरा करने के लिए मद्रास चली गई…इसके पीछे उनकी मंशा यह भी थी कि मद्रास में जा कर वह देश की राजनीतिक स्थिति को अच्छे से समझ सकेंगी और दलित महिलाओं के लिए कुछ कर सकेंगी.
दलित महिलाओं के उत्थान के लिए मीनमबल के बाजू फड़क चुके थे…1928 में वह पहली बार तब प्रकाश में आईं जब उन्होंने साइमन कमीशन के पक्ष में भाषण दिया था. जिसका विरोध उच्च जाति के कुछ राजनेताओं ने यह कहकर किया यह भारतीय हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करता…जबकि अपने भाषण में मीनमबल ने साइमन कमीशन से दलितों के लिए सकारात्मक कामों की अपील की थी.
अब धीरे धीरे समाज में उनका कद बढ़ने लगा था…दलित महिलाएं उन्हें अपने प्रतिनिधि के रुप में देखने लगी थीं…वह लंबे समय तक बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और पेरियार के साथ रहीं और दलितों के हितों में कार्य किया. उन्होंने तमिलनाडु में दलितों के मन में चेतना और जाति विरोधी आंदोलन के जरिए अलख जगाने का काम किया.
ध्यान देने वाली बात है कि दिसंबर 1937 में मीनमबल ने कहा था, कहा जाता है कि यदि एक परिवार में एकता ना हो तो उसका नाश हो जाता है. इसी वजह से यह ज्ञात होना चाहिए कि समाज, राष्ट्र या अन्य किसी भी चीज को उन्नति करने के लिए एकता की ताकत चाहिए. हालांकि हमारे देश से इस बात को खत्म करने में समय लगेगा, लेकिन फिर भी हमें अपने समुदाय के लोगों को एक साथ होकर यह साबित करना होगा कि हम भी उनकी तरह मनुष्य हैं. इसी के साथ ही वह जातिवादी व्यवस्था का विरोध करने वाली पहली दलित महिला बन गईं.
मद्रास की मजिस्ट्रेट
आपको बता दें कि मीनमबल ने कई सरकारी पदों पर सेवा दी हैं. वह मद्रास की मजिस्ट्रेट थी. इसके अलावा वह अनुसूचित जाति सहकारी बैंक की निदेशक भी रही थीं. कहा जाता है कि इन्होंने ही मद्रास सम्मेलन में ई वी रामास्वामी को पेरियार का नाम दिया था. यह नाम सुनकर पहले तो रामास्वामी खूब हंसे और फिर बहन के उपहार के तौर पर नाम को स्वीकार कर लिया.
1925 में पेरियार ने आत्मसम्मान आंदोलन की शुरुआत की थी. मीनमबल ने इस आंदोलन में उनका जमकर समर्थन किया. वह इस अन्दोलन की नीतिवादी नेताओं में से एक थी. जिसके तहत उन्होंने दलित औरतों को उत्पीड़न, जाति असमानता, छुआछूत के खिलाफ लड़ाई में उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया. इन्होंने दलित समुदाय के लिए अपना जीवन खपा दिया. वह 80 वर्ष की आयु में सार्वजनिक सेवा से सेवानिवृत्त हो गईं. 30 नवंबर 1992 को उनका निधन हो गया.