Belchhi massacre: बिहार के पटना जिले के बाढ़ विधानसभा क्षेत्र के बेलछी गांव में 27 मई 1977 को जो हुआ, उसने न केवल पूरे प्रदेश बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। यह नरसंहार जातिगत तनाव और संपत्ति के विवाद का एक ऐसा काला अध्याय है, जिसकी यादें आज भी लोगों को सिहरने पर मजबूर कर देती हैं। इस जघन्य अपराध के बाद देश की राजनीति और सत्ता में बदलाव आया, लेकिन गांव के हालात आज भी जस के तस बने हुए हैं।
कैसे हुआ बेलछी नरसंहार? – Belchhi massacre
इस नरसंहार की शुरुआत जमीन के एक टुकड़े और खेतों में पानी के विवाद से हुई थी। यह विवाद गांव के ऊंची जाति के जमींदारों और दलित समुदाय के बीच था। धीरे-धीरे यह झगड़ा बढ़ता गया और अंततः 27 मई 1977 को इसका नतीजा 11 दलितों की निर्मम हत्या के रूप में सामने आया।
पीड़ित जनक पासवान, जो इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं, ने बताया,
“मामला एक-दूसरे को बड़ा साबित करने का था। खेत के पटवन और एक कट्ठा जमीन को लेकर शुरू हुआ विवाद 11 लोगों की मौत के बाद ही शांत हुआ। 60 से 70 लोगों ने हमारे घर को घेर लिया और बिना किसी चेतावनी के गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। इसके बाद 11 लोगों को एक जगह इकट्ठा कर पेट्रोल और डीजल डालकर जला दिया गया।”
डर से लोगों ने गांव छोड़ दिया
इस नरसंहार के बाद गांव में दहशत फैल गई। कई दलित परिवारों ने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया, क्योंकि उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता थी। लेकिन जब इस घटना की खबर देशभर में फैली, तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक भी यह सूचना पहुंची।
13 अगस्त 1977 को इंदिरा गांधी पटना पहुंचीं और जब उन्होंने बेलछी जाने की इच्छा जताई, तो उन्हें बताया गया कि रास्ता बेहद खराब है और बारिश की वजह से और भी मुश्किल हो चुका है। लेकिन इंदिरा गांधी पीछे नहीं हटीं। पहले उन्होंने पैदल जाने की कोशिश की, लेकिन जब यह संभव नहीं हो पाया, तो उन्होंने एक स्थानीय व्यक्ति से हाथी मंगवाया और हाथी पर सवार होकर बेलछी गांव पहुंचीं।
इंदिरा गांधी का बेलछी दौरा: राजनीतिक और सामाजिक असर
जब इंदिरा गांधी बेलछी गांव पहुंचीं, तो वहां पहले से ही हजारों लोगों की भीड़ जुट चुकी थी। उन्होंने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और उनके दर्द को सुना। उनके साथ प्रतिभा पाटिल भी मौजूद थीं।
सुदमिया देवी, जिनके परिवार के दो सदस्य इस नरसंहार में मारे गए थे, ने बताया,
“इंदिरा गांधी ने वादा किया था कि हमें हमारी जमीन वापस मिलेगी। कुछ समय के लिए हमें जमीन मिली भी, लेकिन बाद में फिर से दबंगों ने कब्जा कर लिया।”
इंदिरा गांधी ने इस घटना को लेकर कड़ी कार्रवाई का वादा किया और मुआवजे के तौर पर पीड़ित परिवारों को जमीन और नौकरी देने की घोषणा की।
सजा और न्याय प्रक्रिया
इस नरसंहार में कुल 23 लोगों को गिरफ्तार किया गया। मुख्य आरोपियों महावीर महतो और परशुराम धानुक को भागलपुर जेल में 1984 में फांसी की सजा सुनाई गई। बाकी अपराधियों को 20 साल की सजा मिली।
लेकिन समय बीतने के साथ ही बेलछी गांव की स्थिति फिर से बिगड़ गई।
- जो जमीन पीड़ित परिवारों को दी गई थी, उसे दबंगों ने दोबारा हथिया लिया।
- कुछ जमीन सरकारी सड़क चौड़ीकरण योजना में चली गई।
- पीड़ित परिवारों को जो नौकरी मिली थी, वह भी सीमित लोगों तक ही रही।
आज भी नहीं बदली गांव की स्थिति
हालांकि, इस नरसंहार ने देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव लाया। इंदिरा गांधी का बेलछी दौरा उनकी वापसी की एक बड़ी वजह बना, लेकिन गांव का सच आज भी नहीं बदला।
जनक पासवान, जिन्होंने इस घटना को अपनी आंखों से देखा था, बताते हैं,
“घटना के बाद पुलिस की चौकी और ब्लॉक की स्थापना जरूर हुई, लेकिन डर का माहौल अभी भी कायम है।”
पीड़ित रामप्रसाद पासवान कहते हैं,
“इंदिरा गांधी ने कहा था कि जो लोग मारे गए, उन्होंने दूसरों के लिए जान दी। लेकिन हमें न्याय नहीं मिला। जमीन दी गई, लेकिन अब वह हमारे पास नहीं है।”
गांव को अब भी जरूरी सुविधाओं का इंतजार
बेलछी नरसंहार के बाद, गांव में कुछ नए लोग आकर बस गए हैं, लेकिन अभी भी विकास की जरूरत बनी हुई है।
- गांव में हाई स्कूल नहीं है, जिससे बच्चों की पढ़ाई मुश्किल हो रही है।
- स्वास्थ्य केंद्र की कमी के कारण लोगों को दूर जाकर इलाज कराना पड़ता है।
- जो मुआवजा दिया गया था, वह भी पूरी तरह से पीड़ितों तक नहीं पहुंचा।
जनक पासवान ने अपनी जमीन देकर एक मिडिल स्कूल खुलवाया, लेकिन गांव के विकास के लिए हाई स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र जरूरी है।
बेलछी नरसंहार भारत के सबसे भयावह जातीय नरसंहारों में से एक था। इस घटना ने देश की राजनीति को हिलाकर रख दिया, लेकिन पीड़ितों को पूरा न्याय नहीं मिल पाया।