Biography of Mahatma Ayyankali: दलित अधिकारों के लिए संघर्ष और सामाजिक क्रांति के अग्रदूत

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Biography of Mahatma Ayyankali: दलित अधिकारों और सामाजिक समानता के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले अय्यंकाली का योगदान भारतीय समाज के लिए अद्वितीय है। 28 अगस्त 1863 को तिरुवनंतपुरम् के एक छोटे से गांव में जन्मे अय्यंकाली ने 25 वर्ष की आयु से ही सामाजिक अन्याय और जातिगत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष शुरू कर दिया था। उनके आंदोलनों ने न केवल दलित समुदाय को आत्मविश्वास दिया, बल्कि उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक भी किया।

दलित महिलाओं के लिए संघर्ष: अस्मिता का अधिकार- Biography of Mahatma Ayyankali

अय्यंकाली ने उस समय के समाज में प्रचलित एक बेहद अपमानजनक प्रथा को चुनौती दी, जिसके तहत दलित महिलाओं को अपने स्तन ढंकने तक का अधिकार नहीं था। ऊंची जातियों की उपस्थिति में उन्हें अपने स्तन के कपड़े हटाने के लिए मजबूर किया जाता था।

अस्मिता के लिए आंदोलन: दक्षिणी त्रावणकोर में अय्यंकाली ने इस नियम के खिलाफ आंदोलन छेड़ा। उन्होंने दलित महिलाओं को प्रेरित किया कि वे गुलामी के प्रतीक माने जाने वाले पत्थर के कंठहार और लोहे की बालियां त्याग दें। उन्होंने उन्हें सामान्य ब्लाउज पहनने के लिए प्रोत्साहित किया।

इस विद्रोह के कारण समाज में दंगे हुए, लेकिन अय्यंकाली और उनके समर्थकों ने हार नहीं मानी। अंततः अय्यंकाली और नायर सुधारवादी नेता परमेश्वरन पिल्लई की मौजूदगी में सवर्णों को समझौता करना पड़ा। सैकड़ों दलित महिलाओं ने गुलामी के प्रतीक आभूषणों को उतार फेंका और अपने आत्मसम्मान को स्थापित किया।

जमीन और आवास का अधिकार

अय्यंकाली ने न केवल महिलाओं की अस्मिता के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि दलित समुदाय के लिए जमीन और आवास के अधिकार के लिए भी संघर्ष किया।

  • श्री मूलम् प्रजा सभाके सदस्य:
    • सदस्य के तौर पर उन्होंने मांग उठाई कि पुलायार समुदाय (खेतिहर मजदूर) को रहने के लिए घर और खाली पड़ी जमीन उपलब्ध कराई जाए।
    • उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप सरकार ने 500 एकड़ भूमि आवंटित की, जिसे 500 पुलायार परिवारों में एक-एक एकड़ के हिसाब से बांटा गया।

शिक्षा के अधिकार का समर्थन

अय्यंकाली का मानना था कि शिक्षा से ही दलित समुदाय अपने अधिकारों के लिए लड़ सकता है। उन्होंने दलितों के लिए स्कूलों और शिक्षा के अवसरों की वकालत की। उन्होंने न केवल दलित बच्चों के स्कूलों में दाखिले की वकालत की, बल्कि भेदभावपूर्ण प्रथाओं का विरोध भी किया। अय्यंकाली ने दलितों को रोजगार के बेहतर अवसर और उनके श्रम के उचित भुगतान के लिए भी संघर्ष किया। उन्होंने बेगार प्रथा का विरोध किया, जिसमें खेतिहर मजदूरों से बिना मजदूरी के काम करवाया जाता था।

सामाजिक सुधार का प्रभाव – अय्यंकाली के आंदोलनों ने केरल में दलित समाज को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया। महिलाओं को सम्मान और आत्मसम्मान मिला। समुदाय को आवास और जमीन जैसे बुनियादी अधिकार प्राप्त हुए। शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अवसर बढ़े।

अंतिम दिन और विरासत – 1904 से ही अय्यंकाली दमे की बीमारी से पीड़ित थे। 24 मई 1941 को उनकी तबियत और बिगड़ गई और 18 जून 1941 को उनका निधन हो गया।
उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी विचारधारा और संघर्ष ने समाज को नई दिशा दी।

अय्यंकाली का जीवन सामाजिक समानता, शिक्षा, और दलित अधिकारों के प्रति समर्पण की कहानी है। उनके आंदोलनों ने न केवल महिलाओं की अस्मिता को बचाया, बल्कि दलित समुदाय को समाज में समान अधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका संघर्ष आज भी सामाजिक न्याय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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