Chhotu Ram Death Anniversary: भारतीय इतिहास किसी से छुपा नहीं है यहाँ कई स्वतंत्रता सेनानी पैदा हुए जिन्होंने देश के लिए प्राण त्याग दिए थे, ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी सर छोटू राम थे। जिनकी आज पुण्यतिथि है, जी हाँ ये और कोई नहीं बल्कि दीनबंधु छोटूराम हैं। जिन्होंने समाज के कई बड़े कार्य किये उन्हें न्याय भी दिलवाया लेकिन क्या आप छोटूराम (Chhotu Ram) के बारें में जानते है अगर नहीं तो चलिए आपको इस लेख में बताते हैं।
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कौन थे किसानों के मसीहा छोटूराम?
चौधरी छोटूराम का जन्म 24 नवंबर 1881 में पंजाब प्रांत में रोहतक (अब हरियाणा) के गांव गढ़ी सांपला में हुआ था। उनका असली नाम रिछपाल था। घर में सबसे छोटे होने के कारण उनका नाम छोटू राम पड़ गया। उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल से हुई। 11 साल की उम्र ही उनकी शादी ज्ञानो देवी से हो गई। इसके बाद उन्होंने दिल्ली के क्रिश्चियन स्कूल में एडमिशन ले लिया। उन्होंने 1905 में दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। 1910 में उन्होंने आगरा कॉलेज से एलएलबी की डिग्री हासिल की। जिसके बाद वह एक वकील बने और फिर पटियाला में एक सरकारी अधिकारी के रूप में कार्य करने लगे। लेकिन जल्द ही उन्होंने किसानों के अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से अपने सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया और राजनीति में सक्रिय हो गए।
राजनीतिक और सामाजिक योगदान
सर छोटू राम का जीवन हमेशा से किसानों के अधिकारों के लिए समर्पित था। उन्होंने किसान सभा और किसान महापंचायत जैसी संस्थाओं की स्थापना की, जो किसानों की समस्याओं को उठाती थीं। वे किसानों की ज़मीन, उनकी फसल, और उनके अधिकारों के रक्षक थे। उन्होंने कृषि में सुधारों की दिशा में कई कार्य किए, जिससे किसानों को न्याय और सम्मान मिल सके। कृषि कानून और किसानों के कर्ज पर नियंत्रण जैसे मुद्दों पर वे मुखर थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर “किसान सभा” बनाई और 1937 में पंजाब में “किसान महापंचायत” की शुरुआत की। उन्होंने भारतीय राजनीति में विशेष रूप से पंजाबी किसानों के अधिकारों की आवाज़ उठाई।
वही सर छोटू राम ने भारतीय समाज में जातिवाद और अन्य सामाजिक बुराईयों को समाप्त करने के लिए काम किया। उन्होंने सामाजिक सुधारों का समर्थन किया और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कई योजनाएँ बनाई। इसके अलवा वे साल 1923 से 1937 तक पंजाब विधानसभा के सदस्य रहे और कृषि और किसानों के मामलों में कई महत्वपूर्ण विधायकों को पारित करवाया।
न्यूजपेपर जाट गजट लॉन्च
वकालत करने के बाद जब उस समय अधिकतर लोग ब्रिटिश इंडियन आर्मी और जाट प्रिंसली स्टेट में शामिल हो रहे थे उस समय में छोटूराम ने राजनीति को चुना। छोटूराम 1916 में कांग्रेस में शामिल हो गए। 1920 में वह रोहतक जिला कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बनाए गए। इससे पहले 1915 में उन्होंने अपना न्यूजपेपर जाट गजट भी लॉन्च कर दिया था। गांधीजी के असहयोग आंदोलन में किसानों की अनदेखी के मुद्दे पर छोटूराम ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। उन्होंने सर फजले हुसैन और सर सिकंदर हयात खान के साथ मिलकर जमींदारा पार्टी बनाई। बाद में इसका नाम यूनियनिस्ट पार्टी हो गया।
मृत्यु और उनकी धरोहर
सर छोटू राम का योगदान भारतीय राजनीति और समाज सुधार में अनमोल है। उनके विचार और कार्य आज भी भारतीय किसानों और समाज के कई हिस्सों में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। उन्हें “किसानों का मसीहा” के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनका निधन 9 जनवरी 1945 को हुआ, लेकिन उनके कार्यों और विचारों ने भारतीय समाज पर गहरी छाप छोड़ी है।
- उनका विचार था कि यदि देश की अर्थव्यवस्था को सुधारना है तो किसानों की भलाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने किसानों को उनकी ज़मीन और खेती से जुड़ी समस्याओं का समाधान दिलाने का प्रयास किया।
- उनका उद्देश्य था कि समाज के निचले वर्गों के लोगों को समान अधिकार मिले और उनके लिए बेहतर जीवन की व्यवस्था हो।