Fatima Sheikh: भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका, फातिमा शेख की 194 वीं जयंती पर विशेष

Fatima Sheikh, First Muslim Indian Teacher
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Fatima Sheikh: हमारे देश में कई ऐसी शख्सियतों ने जन्म लिया, जिन्होंने समाज को बेहतर बनाने के लिए जी जान लगा दिया। उन्हीं में से एक महिला फातिमा शेख (Fatima Sheikh)भी थी, जिन्होंने ने समाज की कुरीतियों को खत्म करने अहम योगदान दिया जो भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका(India’s first Muslim female teacher) भी थीं। लेकिन क्या आप फातिमा शेख (Fatima Sheikh) के बारें में जानते हैं । अगर नहीं तो चलिए आपको इस लेख में बताते हैं आखिर कौन थी फ़ातिम शेख…

भारत की पहली मुस्लिम महिला टीचर – India’s first Muslim female teacher

आज हम फातिमा शेख की 194 वीं जयंती मना रहे हैं. सोशल मीडिया पर उन्हें याद किया जा रहा है. लेकिन सोचिए कितना मुश्किल रहा होगा उनका सफ़र, कितना संघर्ष किया होगा. महिलाओं, दलितों के लिए रूढ़ीवादी समाज से जूझना, लोगों को समझाना कि लड़कियों को स्कूल भेजो. फातिमा शेख ने जो सपना देखा उसके लिए उन्होंने ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर काम किया.

भारतीय समाज में कई ऐसी महान महिलाए थी जिन्होंने समाज को आगे बढ़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिए है। उन्हीं में से एक फातिमा शेख थी। जी हाँ, फातिमा शेख भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका थीं और उनका योगदान भारतीय समाज में बहुत महत्वपूर्ण था। फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1931 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। वे सामाजिक सुधारक ज्योतिबा फुले के करीबी सहयोगी उस्मान शेख की बहन थीं। उन्होंने निजी ट्यूटर्स से शिक्षा हासिल की और उर्दू, अरबी, और फ़ारसी जैसी कई भाषाओं में पारंगत हो गईं।

दलित और मुस्लिम महिलओं को किया शिक्षित

उन्होंने 1860 के दशक की शुरुआत में मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा देना शुरू किया। वे सावित्रीबाई फ़ुले के साथ मिलकर काम करती थीं और दलित, मुस्लिम महिलाओं, और बच्चों को शिक्षित करने के लिए काम करती थीं। वे महिला अधिकारों और सामाजिक सुधारों की पैरोकार थीं। उन्होंने अपने पति शेख अब्दुल लतीफ़ के साथ मिलकर जातिगत भेदभाव और लैंगिक असमानता जैसे सामाजिक अन्यायों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी।

फातिमा शेख ने विशेष रूप से शोषितों और वंचित वर्गों के बच्चों को शिक्षा देने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। उनका मानना था कि शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है, जो लोगों को उनके अधिकारों का अहसास कराता है और समाज में समानता लाता है। उन्होंने भारत में मुस्लिम महिलाओं और दलितों के लिए शिक्षा की राह खोली। वे मुंबई में एक स्कूल खोलने वाली पहली महिला शिक्षिका थीं, जिसमें उन्होंने गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चों को पढ़ाया। यह स्कूल खासतौर पर महिलाओं और बच्चों को शिक्षा देने के उद्देश्य से था जो उस समय समाज में पिछड़े हुए थे।

सामाजिक सुधार आंदोलनों में सहयोग

फातिमा शेख ने न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में काम किया, बल्कि उन्होंने समाज में व्याप्त जातिवाद, पुरुष प्रधानता और असमानता के खिलाफ भी आवाज उठाई। उन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए कई प्रयास किए, खासकर मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के लिए, जिन्हें उस समय शिक्षा और सामाजिक स्वतंत्रता की कमी थी। फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले ने मिलकर समाज में व्याप्त जातिवाद, पितृसत्तात्मक सोच और असमानता के खिलाफ काम किया। दोनों ने यह सुनिश्चित किया कि महिलाओं और पिछड़ी जातियों के लिए शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित किया जाए। वे शिक्षा को एक सशक्तिकरण का माध्यम मानती थीं, जिससे महिलाएं और पिछड़े वर्ग अपने अधिकारों को पहचान सकें और आत्मनिर्भर बन सकें।

उनका यह कार्य सिर्फ एक शिक्षा प्रणाली तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज में जागरूकता और समानता की दिशा में भी बहुत काम किया। फातिमा शेख ने यह दिखा दिया कि शिक्षा का अधिकार केवल एक विशेष वर्ग तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि सभी बच्चों को समान अवसर मिलने चाहिए। फातिमा शेख का योगदान भारतीय शिक्षा व्यवस्था में ऐतिहासिक और प्रेरणादायक है, और उनकी मेहनत से समाज में जागरूकता और सामाजिक बदलाव के नए द्वार खुले।

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