क्या आपने जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम सुना है? जाहिर है..नहीं जानते होंगे. ये वही दलित नेता थे, जिन्होंने सबसे पहले मुस्लिम दलित भाई भाई का नारा दिया था और इसी चक्कर में मोहम्मद अली जिन्ना के समर्थन में पाकिस्तान चले गए थे…लेकिन 2 साल के भीतर ही उन्हें भारत लौटने पर मजबूर होना पड़ा था. आखिर क्या कारण थे, जिसके कारण जोगेंद्र नाथ मंडल वापस हिंदुस्तान लौट आए थे? वो क्या कारण थे, जिसने उनका पाकिस्तान और मुसलमानों से भरोसा उठा दिया?इस लेख में हम आपको बताएंगे की पाकिस्तान में देशद्रोही और भारत में राजनीतिक अछूत कहे जाने वाले दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल के बारे बताएंगे जिन्हें दलित समुदाय ने भी नकार दिया था.
जोगेंद्र नाथ का मंडल
दरअसल, जोगेंद्र नाथ मंडल का जन्म पश्चिम बंगाल के एक नामशूद्र परिवार में हुआ था. वह आजादी के पहले देश में बाबा साहेब अंबेडकर के बाद दूसरे सबसे चर्चित दलित नेता था. वह खुद भी बाबा साहेब अंबेडकर से काफी प्रभावित थे. लेकिन अंबेडकर के अलावा वो जिस व्यक्ति से ज्यादा प्रभावित थे…वो कोई और नहीं बल्कि भारत को बांटने वाले मोहम्मद अली जिन्ना थे. जिन्ना के प्रभाव के कारण 1930 के दशक से ही नामशूद्र मुस्लिम लीग के मजबूत सहयोगी बन गए थे. बंगाल में मुस्लिम दलित भाई भाई का नारा चर्चा में आ गया था. दलित मुस्लिमों के साथ हाथ से हाथ पकड़कर खड़े थे.
जिन्ना ने अपने भाषण में पाकिस्तान के भविष्य का खाका पेश करते हुए पाकिस्तान को मजहब से अलग रखने का ऐलान किया था. उसी भाषण में जिन्ना ने यह कहा था कि “समय के साथ हिंदू हिंदू नहीं रहेंगे और मुसलमान मुसलमान नहीं रहेंगे. धार्मिक रूप से नहीं, क्योंकि धर्म एक निजी मामला है, बल्कि राजनीतिक रूप से एक देश के नागरिक होने के नाते.” जिन्ना ने यह भी कहा था, “हम एक ऐसे दौर की तरफ जा रहे हैं जब किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. एक समुदाय को दूसरे पर कोई वरीयता नहीं दी जाएगी. किसी भी जाति या नस्ल के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा.”
जिन्ना के मुख से प्रस्फुटित हुए इन शब्दों ने जोगेंद्र नाथ मंडल को लट्टू कर दिया था. उन्हें लगने लगा था कि जिन्ना से बड़ा कोई नेता नहीं है, इस्लाम से अच्छा कोई धर्म नहीं है और मुसलमानों से अच्छे इंसान ही नहीं हैं. इसके बाद उन्होंने अपनी ताकत से असम के सिलहट को पाकिस्तान में मिला दिया था. 3 जून 1947 की घोषणा के बाद असम के सिलहट को जनमत संग्रह से यह तय करना था कि वो पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा या भारत का. उस इलाकें में हिंदू मुस्लिम की संख्या बराबर थी. शातिर चाल चलते हुए जिन्ना ने इलाके में मंडल को भेजा. मंडल ने वहां दलितों का मत पाकिस्तान के पक्ष में झुका दिया,जिसके बाद सिलहट पाकिस्तान का हिस्सा बन गया. आज सिलहट बांग्लादेश में है और सिलहट को बांग्लादेश बनाने वाले दलित भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं.
इस्लामिक हथकंडा
आपको बता दें कि जोगेंद्र नाथ मंडल, बाबा साहेब अंबेडकर के परम अनुयायी थे लेकिन अपने राजनीतिक स्वार्थ के चक्कर में उन्होंने अंबेडकर के सिद्धांतों की तिलांजलि दे दी थी. अपने राजनीतिक स्वार्थ में अंधे मंडल को तनिक भी संदेह नहीं हुआ कि जिन्ना जो कह रहा था वो काफिरों को मूर्ख बनाने का इस्लामिक हथकंडा के अलावा कुछ नहीं था….इतने पढ़े लिखे और महान होने के बावजूद वह जिन्ना में ही अंबेडकर को तलाशने लगे थे.
पाकिस्तान की संविधान सभा की पहली बैठक 11 अगस्त 1947 को हुई थी यानी औपचारिक स्वतंत्रता से तीन दिन पहले.जब भारत और पाकिस्तान ने 14 और 15 अगस्त को स्वतंत्रता प्राप्त की, तब तक मुस्लिम लीग दलितों के साथ संबंधों को एक सांचे में ढाल चुकी थी. 1947 में विभाजन के बाद जोगेंद्र नाथ मंडल अपने समर्थकों के साथ पाकिस्तान चले गए. पाकिस्तान में उन्हें प्रथम कानून और श्रम मंत्री बनाया गया. वहीं, आजादी के बाद जब भारत में संविधान लिखने की प्रक्रिया शुरू हुई तो नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल ने एक गैर-कांग्रेसी दलित नेता डॉ. भीमराव आंबेडकर को जगह दी और देश का पहला कानून मंत्री बनाया.
इसी रणनीति के तहत मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने भाषण से पहले बंगाल के एक दलित नेता जोगेन्द्र नाथ मंडल से संविधान सभा के पहले सत्र की अध्यक्षता करवाई थी. हालांकि, अब पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के वेबसाइट पर पहले अध्यक्ष के तौर पर मंडल का नाम नहीं है.
हालांकि, पाकिस्तान में बंटबारे के बाद गैरमुस्लिमों के उपर भयानक अत्याचार, नरसंहार, लूट, बलात्कार और मन्दिरों का विध्वंस देखकर जल्द ही उनका दलित मुस्लिम भाई भाई का भ्रम टूट गया. विरोध करने पर उन्हें देशद्रोही कहा गया. पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में हजारों लाखों दलितों का भयानक नरसंहार, बलात्कार और जबरन धर्मांतरण किया गया. स्त्रियों को नग्न कर सड़कों पर जुलुस निकालकर जश्न मनाया गया.
मंडल को जल्द ही इस बात का एहसास हो गया कि पाकिस्तान और जिन्ना को लेकर उन्होंने जो कुछ भी सोचा वह सारी बातें फर्जी थी. जोगेंद्र नाथ मंडल के बेटे के अनुसार, मंडल ने पाकिस्तान में जिन्ना पर भरोसा किया और दलितों के बेहतर भविष्य की उम्मीद में भारत में अपना सब कुछ त्याग दिया, लेकिन जिन्ना के बाद उसी पाकिस्तान में उन्हें राजनीतिक रूप से अछूत बना दिया गया.
उसके बाद उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन गृहमंत्री लियाकत अली को 7 अक्टूबर 1950 को अपना इस्तीफा सौंप दिया और भारत लौट आए. अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा था कि भारत विभाजन के समय करोड़ों हिन्दू, दलित, बौद्ध, सिक्ख आदि गाँधी और मंडल के भरोसे पाकिस्तान में ही रह गये थे. लाखों दलित भारतीय भी मेरे साथ पाकिस्तान चले गये,जिन्हें विश्वास था मुसलमान उनका साथ देंगे. पर हुआ यह कि उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया, बलात्कार किया गया और जबरन धर्मांतरण किया गया. हालांकि, उस समय मंडल का त्यागपत्र पाकिस्तान के लिए राजनीतिक संकट के समान बन गया था.
कब लौटे थे भारत
वहीं, जोगेंद्र नाथ मंडल जब भारत में आकर बस गए तो यहां भी अब लोगों ने उन्हें शक की नजर से देखना शुरु कर दिया था. पाकिस्तान जाने से पहले, वो भारत में दलितों के सबसे बड़े नेता डॉ. आंबेडकर के सहयोगी रहे थे, लेकिन अब मंडल का समर्थन करने वाला कोई नहीं था. 1950 में मंडल भारत लौटे, तो वह अब न केवल एक अछूत दलित थे, बल्कि वो एक ‘राजनीतिक अछूत’ भी बन गए थे. 1968 तक उन्होंने अपना अधिकांश समय कलकत्ता के एक बेहद पिछड़े इलाके में बिताया. ये तत्कालीन प्रसिद्ध रवींद्र सरोवर या डकारिया झील का दलदली क्षेत्र था. पहले यहां दलित झुग्गियां थीं. मंडल उन्हीं झुग्गियों में रहा करते थे.
पाकिस्तान से आने के बाद उन्होंने फिर से अपनी पैंठ बनाने की कोशिश भी की लेकिन अब उन्हें कोई पूछने वाला नहीं था. उनके अनुयायी देश के प्रमुख पार्टियों में शामिल हो गए थे. मंडल ने चार बार चुनाव भी लड़ा लेकिन हर बार उनकी जमानत जब्त हुई. उन्होंने एक छोटा समाचार पत्र या पत्रिका प्रकाशित करने की भी कोशिश की. लेकिन छोटा पाठक वर्ग होने की वजह से उन्हें इसमें भी कामयाबी नहीं मिली. 1968 में एक नाव से नदी पार करते समय उन्हें दिल का दौरा पड़ा. नाविक के अलावा उस समय वहां कोई गवाह नहीं था. उनका पोस्टमार्टम भी नहीं किया गया था.