Naag Diwali Details – आदिवासी समुदायों की नाग दिवाली एक विशेष परंपरा है जो भारत के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों में मनाई जाती है, खासकर मध्य भारत और पूर्वोत्तर भारत में। यह त्यौहार आदिवासी समुदायों द्वारा अपनी स्थानीय मान्यताओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। नाग दिवाली का आदिवासी रूप मुख्य रूप से सांपों (नागों) की पूजा और सम्मान से जुड़ा होता है, जो इन समुदायों के लिए एक पवित्र और धार्मिक प्रतीक होते हैं।
आदिवासी नाग दिवाली का अर्थ और महत्व
दिवाली का त्योहार मनाए हुए लगभग एक महीने से ज्यादा वक्त गुजर चुका है, लेकिन आदिवासियों दिवाली की धूम अब भी देखने मिल रही है. दरअसल, आदिवासियों ने मिलकर जनजातीय सभ्यता, संस्कृति और लोक कलाओं को सहेजने के लिए भव्य तरीके से नाग दिवाली (Naag Diwali) का आयोजन किया, जिसमें आदिवासी लोक कलाओं के कई रंग देखने मिले. Naag Diwali Details.
सांपों की पूजा: आदिवासी समाज में सांपों को एक विशेष स्थान प्राप्त है। उन्हें देवता या प्राकृतिक शक्तियों के रूप में पूजा जाता है। नाग दिवाली के समय, लोग सांपों को दूध, मिठाई, फल और फूल अर्पित करते हैं ताकि वे समाज को सुरक्षित रखें और समृद्धि प्रदान करें।
प्राकृतिक संतुलन और सम्मान: आदिवासी समाजों में प्रकृति और उसके जीवों के प्रति एक गहरी श्रद्धा होती है। सांपों को विशेष रूप से धरती के संरक्षक और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने वाले के रूप में पूजा जाता है। उन्हें जीवन की एक महत्वपूर्ण कड़ी माना जाता है।
खेतों और फसलों की सुरक्षा: आदिवासी किसान अपने खेतों और फसलों की रक्षा के लिए सांपों की पूजा करते हैं, ताकि कीटों और अन्य नकारात्मक प्रभावों से फसलें सुरक्षित रहें। सांपों को खेतों में प्राकृतिक शिकारियों के रूप में देखा जाता है जो फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों को नियंत्रित करते हैं।
आध्यात्मिक और सामाजिक एकता: यह पर्व आदिवासी समुदाय में आपसी भाईचारे और एकता को बढ़ावा देता है। नाग दिवाली के अवसर पर लोग एक साथ मिलकर सामूहिक पूजा करते हैं, जिससे समुदाय में सामूहिक भावना और सहयोग का माहौल बनता है।
संस्कृति को सहेजने के लिए आगे आए आदिवासी समाज – Naag Diwali Details
आधुनिकता के इस दौर में आदिवासी समाज ने एक होकर अपनी संस्कृति को सहेजने का प्रयास किया है. जिले में आदिवासी सभ्यता संस्कृति का गौरवशाली इतिहास रहा है. जिले की प्रमुख जनजातियों में गोंड़ और कोरकू प्रमुख हैं जो आदिवासी हैं, लेकिन इनके रीति रिवाज और धार्मिक मान्यताएं अलग अलग हैं. इसके अलवा नाग दिवाली के दौरान आदिवासी समाजों के लोग विशेष रूप से रात्रि में पूजा अर्चना करते हैं, और यह पर्व उनके जीवन में शांति, समृद्धि और प्राकृतिक संरक्षण का प्रतीक होता है।