महिलाओं को अंग्रेजी नहीं पढ़नी चाहिए
महिलाओं को सिर्फ देसी भाषा का ज्ञान होना चाहिए
महिलाओं को किताबी शिक्षा नहीं बल्कि सिलाई कढ़ाई का काम सीखना चाहिए
गैर ब्राह्मण लोग पढ़ लिख कर क्या ही करेंगे
ये शब्द थे मनुवादियों के महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के. तिलक महिला विरोधी, दलित विरोधी और किसान विरोधी होने के साथ-साथ वो महिला शिक्षा विरोधी और विधवा विरोधी भी थे…वह नहीं चाहते थें कि महिलाओं को एक नया जीवन मिले, महिलाएं आगे बढ़ें, शिक्षित हों और समाज में अपनी पहचान स्थापित कर सकें..उस समय तिलक की घृणित मानसिकता महिलाओं के लिए काल बनीं हुई थी…जो भी महिला शिक्षा ग्रहण करने के बारे में सोचती, मनुवादी समाज उसे दुत्कार देता.
महिलाओ की शिक्षा
दरअसल, बाल गंगाधर तिलक को लेकर भारतीय इतिहास में काफी हाइप क्रिएट किया गया है…उन्हें हमेशा से महान बताया जाता रहा है…तिलक के तारीफ में कसीदें पढ़े जाते हैं. लेकिन तमाम रिसर्च यह बताते हैं कि तिलक की महानता में भी फ्रॉड है…तिलक को सिर्फ और सिर्फ ऊंची जाति का होने के कारण इतना महिमामंडित किया गया..वरना तिलक ने अपनी जिंदगी में इतने कुकर्म किए हैं कि उन्हें इतिहास में जगह भी नसीब नहीं होनी चाहिए.
आपको बता दें कि 1881 में तिलक ने अपने पत्रकारिता के करियर की शुरुआत की थी. लेकिन उनके पत्रकारिता का पूरा करियर ही तीन चीजों के विरोधाभास पर चला है. उसमें पहला है अकाल के समय कर्जे में डूबे किसानों का विरोध. दूसरा है जाति व्यवस्था का बचाव और तीसरा है महिलाओं की शिक्षा का विरोध. तिलक लगभग हर मुद्दे पर अपने ही समाज और देश के लोगों के विरुद्ध रहे हैं. इस कुंठित व्यक्ति को लेकर हम तमाम वीडियो पहले भी बना चुके हैं, किसानों के विरोध में उनके वक्तव्य और जाति व्यवस्था के बचाव को लेकर हम पहले ही वीडियो बना चुके हैं, जिनके लिंक आपको डिस्क्रिप्शन में मिल जाएंगे..
अब महिलाओं की शिक्षा को लेकर तिलक ने क्या तिकड़म फैलाया था, चलिए उसे भी समझ लेते हैं. यह वही दौर था जब ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पहला बालिका विद्यालय खोला था. वहीं, महादेव गोविंद राणाडे ने 1884 में पुणे में लड़कियों का हाई स्कूल खोला. बस फिर क्या था, तिलक बिदक गए और इसका विरोध शुरु कर दिया.
तिलक का कहना था कि यदि विशेष जरूरत हो, तो महिलाओं को गृह विज्ञान और सफाई कार्य जैसी शिक्षा दी जानी चाहिए. ऐसी महिलाएं ही आगे जाकर निपुण बन सकती है. उसके अनुसार महिलाएं इंग्लिश, गणित, विज्ञान जैसे कठोर विषय पढ़ने के लिए बिलकुल उपयुक्त नहीं है. उसने कहा कि हिन्दू समाज में पुरुष और महिला के कार्य अलग अलग हैं, इसलिए उनको अलग अलग शिक्षा दी जानी चाहिए.
तिलक ने क्या कहा
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गोपाल कृष्ण गोखले ने भी तिलक के स्त्री शिक्षा संबंधी विचारों को सही नहीं माना था और उन्होंने बालिकाओं को पढाए जाने का समर्थन किया था. बाल गंगाधर तिलक का मानना था कि महिलाओं को अंग्रेजी भाषा नहीं पढ़नी चाहिए. वह मानते थें कि महिलाएं अंग्रेजी भाषा पढ़कर सामान्य गृहस्थी का जीवन नहीं जिएंगी. लड़कियाँ स्कूलों में सुबह 11 बजे से शाम पाँच बजे तक पढ़ें, इसका भी उन्होंने विरोध किया. वे चाहते थे कि लड़कियों को सुबह या शाम सिर्फ़ तीन घंटे पढ़ाया जाना चाहिए ताकि उन्हें घर का काम करने और सीखने का वक़्त मिले.
तिलक ने महिला शिक्षा के विरोध में आंदोलन भी चलाया. अपने सामाचार पत्रों में इसका जमकर विरोध किया. उनका मानना था कि महिलाओं की शिक्षा, सामाजिक स्तर बदलने के लिए नहीं बल्कि पारंपरिक वैवाहिक जीवन जीने के लिए होनी चाहिए.
मनुवादियों के कथित क्रांतिकारी की यही सच्चाई है, लेकिन ऊंची जाति में पैदा होने के कारण यह कुंठित व्यक्ति भी महामानव का दर्जा पा गया…