Shankar Shah and Raghunath Shah: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जहां अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इन वीरों की लिस्ट में मध्य प्रदेश के गोंडवाना साम्राज्य के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। इन वीरों ने अपने मातृभूमि के स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए जो बलिदान दिया, वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अद्वितीय है। उनका बलिदान दिवस हर साल 18 सितंबर को देशभर में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है।
गोंडवाना के शूरवीर योद्धा (Gond King Shankar Shah and Raghunath Shah)
राजा शंकर शाह का जन्म गोंड राजवंश के वीर योद्धा परिवार में हुआ था। उनका शासन क्षेत्र वर्तमान मध्य प्रदेश के जबलपुर और उसके आसपास के इलाकों तक फैला था। वे केवल एक बहादुर राजा ही नहीं, बल्कि अपनी प्रजा के कल्याण और स्वतंत्रता के प्रति बेहद संवेदनशील थे। उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह भी अपने पिता की तरह देशप्रेम और साहस की मिसाल थे।
1857 के विद्रोह का हिस्सा
1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पूरे देश में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक बना। इसी समय राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाई। उन्होंने कविताओं और गीतों के माध्यम से जनता को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि अंग्रेज भारतीयों के स्वाभिमान और संस्कृति को नष्ट करने पर तुले हैं।
हालांकि, उनकी योजनाओं की भनक अंग्रेजों को लग गई। उन्हें 14 सितंबर 1858 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया गया।
अंतिम बलिदान – Shankar Shah and Raghunath Shah
गिरफ्तारी के बाद राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को चार दिनों तक अंग्रेजों द्वारा यातनाएं दी गईं। आखिरकार, 18 सितंबर 1858 को जबलपुर की कोतवाली के सामने दोनों वीरों को तोप के मुँह से बांधकर उड़ा दिया गया। इस प्रकार, वे देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर अमर हो गए।
बलिदान का ऐतिहासिक महत्व
राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक प्रेरणा स्रोत बना हुआ है। उनका यह बलिदान केवल गोंडवाना के इतिहास तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में वीरता और देशप्रेम की मिसाल है।
श्रद्धांजलि और स्मारक
दोनों वीरों के बलिदान दिवस पर हर साल 18 सितंबर को श्रद्धांजलि दी जाती है। उनकी स्मृति को जीवंत रखने के लिए राज्य और केंद्र सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:
- बलिदान दिवस का आयोजन: मध्य प्रदेश सरकार हर साल 18 सितंबर को “बलिदान दिवस” के रूप में मनाती है।
- छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नामकरण: छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम बदलकर “राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय” रखा गया है।
- संग्रहालय सह स्मारक: जबलपुर में करोड़ों रुपये की लागत से “संग्रहालय सह स्मारक” का निर्माण किया जा रहा है।
- एल्बम और डॉक्यूमेंट्री: राज्य सरकार के स्वराज संस्थान द्वारा राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के जीवन पर आधारित एलबम तैयार की गई है।
आधुनिक भारत के लिए प्रेरणा
राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह का जीवन हमें यह सिखाता है कि मातृभूमि की स्वतंत्रता से बढ़कर कुछ भी नहीं है। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है, जो हमें देश की स्वतंत्रता, एकता और अखंडता को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
आज जब हम उनकी याद में बनाए जा रहे स्मारकों और संस्थानों को देखते हैं, तो हमें एहसास होता है कि उनकी वीरता और बलिदान की गाथा को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके संघर्ष का यह संदेश आज भी हमारे देशवासियों को मातृभूमि के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होने की प्रेरणा देता है। उनकी इस गौरवशाली गाथा को संजोकर रखना हर भारतीय का कर्तव्य है। यह कहानी न केवल इतिहास का हिस्सा है, बल्कि हमारी संस्कृति और पहचान का अभिन्न अंग है।