Kabir Das को “मनुवादियों” ने अपने जाल में ऐसे फंसा लिया ? षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश

Kabirdas and Sikandar Lodi
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जो तूं बंभन बंभनी के जाया, आ न बाट हवे क्यों न आया….यानी यदि तुम ब्राह्मण इतने ही महान हो तो योनि की जगह किसी अन्य स्थान से पैदा क्यों नहीं हुए. ये शब्द थे कबीर दास के, वह ब्राह्मणों को बिल्कुल भी पसंद नहीं किया करते थे लेकिन हिंदी और हिंदू साहित्य के मठाधीशों ने उन्हें लेकर ऐसा प्रोपेगेंडा फैलाया कि लोग उन्हें हिंदूवादी और ब्राह्मणवादी समझने लगे…उन्हें रामभक्त साबित कर दिया. लेकिन जब उस समय के कवि, राजाओं से बख्शीस लेने के लिए अपने छंद में उनकी तारीफों के पुल बांध रहे थे…तब पिछड़ी जाति से आने वाल कबीर दास समाज की बुराइयों जैसे जातिभेद, छुआछुत, सांप्रदायिकता और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे. कबीर दास से जुड़े कई किस्से हैं लेकिन उनमें से एक किस्सा ऐसा है, जिसे जान कर आप भी कबीर दास के फैन हो जाएंगे…

कबीरदास और सिकंदर लोदी

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान….मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान…कबीर दास ने अपने इस दोहे से जात पात का विरोध करते हुए कहा था कि अगर आप किसी से ज्ञान प्राप्त कर रहे हो तो उसकी जाति के बारे में ध्यान न दो…उन्होंने जातिवाद को मिटाने के तमाम प्रयास किए लेकिन कई महंत और मौलवियों को उनकी बातें पसंद नहीं आती थी. महंत और मौलवी उन्हें काशी से निकालने की कोशिश करने लगे. इसकी शिकायत तत्कालीन राजा सिकंदर लोदी तक पहुंच गई… वह बहलोल लोदी द्वारा स्थापित लोदी वंश के दूसरे शासक थे…उनके पास शिकायत पहुंचने का मतलब यह था कि बात अब बहुत आगे निकल चुकी थी…फिर क्या था…कबीरदास को सिकंदर लोदी के दरबार में पेश होना पड़ा था.

कई महंतों ने बादशाह से यह भी कहा कि कबीरदास धर्म की बुराइयां करता है. लेकिन उन महंतों को यह समझ नहीं थी कि कबीरदास समाज में फैली वैमनस्यता के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे…पिछड़ों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे…राज दरबार में शिकायत के बाद कबीरदास को बुलाया गया और इस बात पर उनकी सफाई मांगी गई. अपनी सफाई में पिछड़ों की आवाज बनकर उठने वाले कबीर दास ने इस मामले में कोई सफाई नहीं दी और खड़े होकर मुस्कुराते रहे. भरे दरबार के सामने कबीर के अख्खड़पन ने राजा को तैश में ला दिया और राजा ने गुस्से में उन्हें मारने का हुक्म दे दिया.

सिकंदर लोदी ने सबसे पहले कबीर को जंजीर में बांधकर गंगा में डुबोने का आदेश दिया लेकिन कबीर बच गए. उन्हें आग में फेंकने का आदेश दिया…वह वहां से भी बच निकले…इतने से भी उस क्रूर बादशाह का मन नहीं भरा तो उनसे कबीरदास के पीछे पागल हाथी छुड़वाया लेकिन कबीर का बाल तक बांका नहीं हुआ. जिसके बाद सिकंदर लोदी को हार माननी पड़ी और उसने कबीर के सामने अपना सिर झुका लिया. उसने कबीर को कई सारी चीजें भेंट की लेकिन उन्होंने वो सब लेने से मना कर दिया. जब वो काशी लौटे तो लोगों को पता चला कि वह सिकंदर लोदी को अपना शिष्य बनाकर आए हैं.

तो ऐसे थे पिछड़ों की आवाज उठाने वाले हमारे कबीर दास. ब्राह्मणों को फूटी आंख भी पसंद नहीं करने वाले कबीर दास को लेकर ब्राह्मणवादियों और मनुवादियों ने ऐसे विचार फैलाएं कि लोगों को लगने लगा कि वह हिंदूवादी हो गए…उन्हें ब्राह्मणों से प्रेम है…लेकिन ऐसा कहीं से भी कुछ नहीं था. कबीर दास ने आयुपर्युंत ब्राह्मणों का विरोध किया…जातिवाद का विरोध किया…पिछड़ों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया…वह पिछड़ी जाति से थे तो उन्हें समाज में पिछड़ों को होने वाली दिक्कतों का एहसास था…इसीलिए पिछड़ों को उनका अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने लड़ाई छेड़ी थी. ऐसे में अब समय आ गया है कि पिछड़ी जाति के लोग कबीर दास को लेकर मनुवादियों को जवाब दें…

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