मनुवाद और ब्राह्मणवाद ने हमेशा से महिलाओं को सताया है. महिलाओं को गुलाम माना है…महिलाओं की आजादी का गला घोटा है. सदियों से अपनी कुंठा में ये लोग हमेशा से हर समुदाय, हर वर्ग के लोगों को प्रताड़ित करते आए हैं..इतिहास में हमें तमाम प्रमाण और साक्ष्य देखने को मिल जाते हैं. दलितों के थूकने पर पाबंदी हो या फिर महिलाओं के कपड़े पहनने पर रोक…मनुवादियों ने अक्सर अपनी विकृत मानसिकता को प्रदर्शित किया है. अंग्रेजों के समय तक भारत की स्थिति ऐसी ही थी. कई इलाके तो ऐसे थे जहां महिलाओं को वस्त्र पहनने की अनुमति नहीं थी…वहीं भारत में ही कई जगह उन्हें अपने स्तन ढकने की भी आजादी नहीं थी…अगर किसी दलित महिला ने अपना स्तन ढक लिया तो उसे टैक्स देना पड़ता था…स्तन के आकार के हिसाब से टैक्स तय होता था…छोटी बच्ची के स्तन निकलते ही उसके परिवार से स्तन कर लिया जाता था…आप जरा सोचकर देखिए वह दृश्य कैसा होगा…हालांकि, इसी के विरुद्ध एक क्रांति की शुरुआत हुई थी, जिसने ब्राह्मणवादी मानसिकता को लहुलुहान कर दिया था…
इस क्रूर प्रथा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानेवाली नंगेली
यह घटना है 19 वीं सदी की यानी आज से करीब 200 साल पहले की. भारत के दक्षिणी राज्य केरल में ब्राह्मणवादियों का वर्चस्व था…वर्चस्व ऐसा कि वहां के राजा पर भी उनका सीधा नियंत्रण था. यहां तक कि राजा भी मनुवादी ही था. राज्य में नीची जात की औरतों को अपनी छाती ढंकने की इजाजत नहीं थी. नंगी छाती को गुलामी का प्रतीक माना जाता था. यहां तक कि उच्च जाति की महिलाओं को भी अपने पति के सामने कपड़े पहनने की इजाजत नहीं थी. देश तो अंग्रेजों से गुलाम था ही लेकिन दलित समाज ब्राह्मणवादियों का गुलाम था और उच्च जाति की महिलाएं अपने घर में ही गुलाम थी. पति की गुलाम थीं…
दरअसल, स्तन कर त्रावणकोर साम्राज्य द्वारा नादारों, एझावारों और अन्य निम्न जाति समुदायों पर लगाया जाने वाला एक प्रमुख कर था. इस घिनौनी प्रथा का विरोध शुरु हुआ 1813 में..नीची जाति की महिलाओं ने बिगुल फूंक दिया और सड़कों पर उतर आई. उनकी मांग थी कि उन्हें भी कुप्पायम पहनने की अनुमति दी जाए. कुप्पायम एक तरह का ऊपरी वस्त्र होता था, जिसे उस समय उच्च जाति की महिलाएं पहनती थीं. स्तन कर के विरोध में उतरी महिलाएं 5 सालों तक अपने हक की लड़ाई लड़ती रहीं.
लेकिन मुनवादी मानसिकता से ग्रसित त्रावणकोर का महाराज तिरुनल राम वर्मा ने 1819 में यह फरमान जारी किया कि दलित औरतों को कपड़े पहनने का कोई अधिकार नहीं है. इस फरमान से दलित महिलाओं को निराशा जरुर हुई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. ब्राह्मणवादी के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी थी. इसी क्रम में काफी बड़ी संख्या में धर्मांतरण हुआ. हजारों की संख्या में दलित, ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए. साल 1820 में त्रावणकोर में एक ब्रिटिश दीवान कर्नल जॉन मुनरो ने उन सभी दलित औरतों को कपड़े पहनने की इजाजत दे दी, जो धर्मांतरण करके ईसाई बन गई थीं.
लेकिन मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थी. कर्नल जॉन के इस फरमान का ब्राह्मणवादियों ने जमकर विरोध किया…इसके विरोध में आंदोलन तक हो गया. उच्च जाति के लोगों ने इसकी यह कहते हुए निंदा की कि यदि दलित महिलाएं कपड़े पहनने लगीं तो हमारी महिलाओं और उनके बीच क्या फर्क रह जाएगा. यह बवाल इतना बढ़ा कि ब्रिटिश अधिकारी को अपना फरमान वापस लेना पड़ा. इसके बाद विरोध कर रही सारी महिलाओं का शारीरिक शोषण किया गया…हालांकि, अब महिलाओं ने ठान लिया था कि भले जो हो जाए…वह पीछे नहीं हटेंगी और अपने अधिकार लेकर रहेंगी.
1813 से शुरु हुआ यह आंदोलन अब 1829 तक पहुंच चुका था. दलित महिलाओं की इस लड़ाई में अब ईसाई औरतों के साथ-साथ उच्च वर्ग और अन्य वर्गों की महिलाएं भी उतर गई थी. अब ब्राह्मणवादियों ने इसका ठीकरा ईसाई लोगों पर फोड़ दिया. उनका कहना था कि ईसाई हिंदू धर्म को खत्म करना चाहते हैं, इसलिए यह विरोध कराया जा रहा है. विरोध कर रही महिलाओं को दबाने के लिए मनुवादियो ने हर टंटा अपनाया….जैसे जैसे दलित महिलाओं पर कहर ठाए जाते, वैसे ही बगावत और विद्रोह की ज्वाला धधक उठती.
औरतें अपनी ज़िद पर अड़ीं रहीं
यह आंदोलन चलता रहा. साल 1858 में सारी हदें तब पार हो गईं जब उच्च जाति के पुरुष सड़क के बीच में महिलाओं के कुप्पायम उतारकर फेकने लगे. एक बार सरकारी कर्मचारी ने नाडर औरतों के कुप्पायम अपने हाथों से फाड़ दिए थे. ब्राह्मणवादी मानसिकता का विरोध कर रहे इन औरतों में नंगेली भी एक थी. अपने समुदाय के ऊपर हो रहे अत्याचार से उसका खून खौल उठा. पति ने नांगेली के विरोध में साथ देने का फैसला लिया और अगले ही दिन से नांगेली अपना स्तन ढकने लगी. धीरे धीरे बात आगे बढ़ी की नंगेली नाम की महिला अपनी छाती ढक रही है लेकिन टैक्स नहीं दे रही है. फिर क्या था, सरकारी अधिकारी टैक्स लेने उसके घर आ पहुंचे. नंगेली का स्तन मापा गया और टैक्स की डिमांड की गई. इसके बाद नंगेल घर के भीतर गई और चाकू से अपने दोनों स्तन काट कर, केले के पत्ते पर लेकर बाहर आईं. टैक्स अधिकारियों के होश उड़ गए, वह डर कर भाग गए. इसके कुछ देर बाद ही नंगेली की मृत्यु हो गई.
दूसरी ओर जैसे ही आंदोलन कर रही महिलाओं को नंगेली की खबर मिली…विद्रोह व्यापक रुप से पूरे राज्य में फैल गया. अब दलितों ने ब्राह्मणवादियों के मुंह पर कालिख पोंतने का फैसला कर लिया था. दलितों द्वारा उच्च जाति के लोगों पर हमला शुरु हो गया. ब्राह्मणवादी मानसिकता पर प्रहार करते हुए कई मोहल्ले फूंक दिए गए. हालात बद से बदतर हो गए. इसी बीत त्रावणकोर के राजा के पास हिंसा रोकने के लिए मद्रास के गवर्नर का आदेश आया.
दलित महिलाओं के इस क्रांति को इतिहास में चन्नार क्रांति के नाम से जाना जाता है. स्तन ढकने के अधिकार के लिए उनका यह लंबा प्रयास सफल भी रही. 26 जुलाई 1859 को त्रावणकोर के महाराज ने फरमान जारी करते हुए, दलित औरतों को स्तन ढकने का अधिकार दे दिया. तब भी उन्हें सिर्फ कुप्पायम जैसे कपड़ों से खुद को ढकने का अधिकार मिला. ऊंची जाति की औरतों की तरह साधाराण कपड़े पहनने का हक उन्हें 20वीं सदी के शुरुआती सालों में मिला.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि समाज में अलख जलाने वाली दलित महिलाओं की इस क्रांति को मोदी सरकार ने NCERT के स्कूली किताबों से हटवा दिया है.