जो मनुवादी आरक्षण हटाने की बात करतें है…दलितों को हासिये पर रखने की बात करते हैं…दलितों के अधिकार छीनने की बात करते हैं…उन्हें या तो इतिहास में दलितों के साथ हुई क्रूरता के बारे में नहीं पता या ये कहा जा सकता है कि उनकी परवरिश ही ऐसी हुई है. दलितों के साथ क्रूरता के बारे में तो सब जानते हैं लेकिन दलित नेताओं के साथ हुई क्रूरता के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं होती. आज हम आपको एक ऐसे दलित सांसद के बारे में बताएंगे, जिन्हें उनकी बेबाकी के लिए जाना जाता था…वह इतने बेबाक थे कि कुछ मुद्दों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी भिड़ जाते थे..लेकिन इस सांसद के साथ उनके पीए ने कुछ ऐसा किया, जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते हैं. दरअसल, इन्हें मिलने वाले सरकारी मकान पर उनके पीए ने कब्जा जमा लिया था. ऊंच जाति के पीए ने उस दलित सांसद को इतना प्रताड़ित किया था कि वो सांसद, संसद भवन में कोने में बैठकर रोते भी थे..
ट्रेन में फर्श पर बैठकर गए दिल्ली
1952 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर एक नेता संसद पहुंचे…नाम था किराय मुसहर. इनके नाम पर बिहार का पहला दलित सांसद होने का रिकार्ड भी है. ये सांसद अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे. वह संसद में बहस के दौरान ठेठ देसी अंदाज में अपने विचार व्यक्त करते थे। वह इतने बेबाक थे कि कई मुद्दों पर नेहरु को ही लपेट देते थे, वहीं जवाहरलाल नेहरू भी इन मुद्दों को गंभीरता से सुनते थे…
18 अगस्त 1920 को मधेपुरा जिले के मुरहो गांव के एक दलित मजदूर खुशहर मुसहर के घर किराय मुसहर का जन्म हुआ था। आज भी किराय मुसहर का घर एक झोपड़ी है और उनके वंशज उसमें रहते हैं। वहीं, किराय मुसहर कि बात करें तो वह शुरू से ही मेहनती और ईमानदार थे। इसी ईमानदार के चलते वह गांव के जमींदार महावीर प्रसाद के चहेते बन गये थे। जमींदार के घर पर राजनेताओं का आना जाना लगा रहता था जिसके चलते मुसहर को भी राजनीति में रुचि होने लगी। जिसे देखते हुए ज़मीदार महावीर प्रसाद यादव और गांव के लोगों ने प्रथम आम चुनाव में आरक्षित सीट से किराय मुसहर को उम्मीदवार बनाया था और लोगों के सहयोग से वह चुनाव जीत गए।
वह सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर भागलपुर और पूर्णिया (एससी के लिए सुरक्षित) की संयुक्त सीट से सांसद बने थे। किराय मुसहर के पोते उमेश कोइराला कहते हैं, ”जब मेरे दादा चुनाव जीते और दिल्ली जाने लगे, तो उनके पास ट्रेन टिकट खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे। तब सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने चंदा करके उनकी दिल्ली यात्रा और भोजन की व्यवस्था की थी। वह ट्रेन के जनरल डिब्बे में फर्श पर बैठकर दिल्ली गए।’ उमेश बताते हैं कि दादा जी की ट्रेन में सीट पर बैठने की हिम्मत नहीं हुई. इसलिए उन्होंने फर्श पर बैठ कर दिल्ली तक का सफर पूरा किया।
उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि जब वह सांसद बने तो दिल्ली में उन्हें जो सरकारी घर मिला था, उस पर उनके पीए ने जबरन कब्जा कर लिया था। ऊंच्च जाति का पीए उनके घर में पूरी शान से रहता था। वहीं, एक बार उन्हें पीए द्वारा पीटे जाने के बाद संसद भवन के सेंट्रल हॉल में रोते हुए पाया गया था..किराय मुसहर एक जननेता थे..उन्होंने सांसद रहते हुए अपने लिए कुछ नहीं किया..समाज की भलाई में उन्होंने अपना जीवन खपा दिया. आज भी उनका परिवार झोपड़ी में रहता है.