BNS Section 36 in Hindi: बीएनएस (भारतीय न्यायिक संहिता) एक व्यापक कानूनी दस्तावेज है और इसकी विभिन्न धाराएं अलग-अलग अपराधों और उनकी सजा को परिभाषित करती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बीएनएस की धारा 35 क्या कहती है, अगर नहीं तो चलिए आपको इस लेख में बताते हैं यह धारा इस बात से संबंधित है कि जब कोई व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार हो, नशे में हो, या किसी अन्य कारण से समझदारी से काम न कर पा रहा हो, तो उस व्यक्ति के द्वारा किए गए किसी भी अपराध के खिलाफ व्यक्तिगत बचाव का अधिकार क्या होगा।
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धारा 36 क्या कहती है? BNS Section 36 in Hindi
बीएनएस की धारा 35 भारतीय न्याय संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है. बीएनएस की धारा 36 कहती है जब कोई कार्य, जो अन्यथा एक निश्चित अपराध होता, वह अपराध नहीं है, युवावस्था के कारण, समझ की परिपक्वता की कमी, मानसिक बीमारी या उस कार्य को करने वाले व्यक्ति का नशा, या किसी अन्य कारण से उस व्यक्ति की ग़लतफ़हमी, प्रत्येक व्यक्ति को उस कार्य के विरुद्ध निजी बचाव का वही अधिकार है जो उसे होता यदि वह कार्य अपराध होता।
मानसिक रोग के प्रभाव में Z, A को मारने का प्रयास करता है; Z किसी अपराध का दोषी नहीं है। लेकिन A के पास निजी बचाव का वही अधिकार है जो उसे तब मिलता अगर Z स्वस्थ होता।
(b) A रात में एक घर में प्रवेश करता है जिसमें प्रवेश करने का उसे विधिपूर्वक अधिकार है। Z, सद्भावपूर्वक, A को घर तोड़ने वाला समझकर, A पर हमला करता है। यहाँ Z, इस गलत धारणा के तहत A पर हमला करके कोई अपराध नहीं करता। लेकिन A के पास Z के विरुद्ध निजी बचाव का वही अधिकार है जो उसे तब मिलता अगर Z उस गलत धारणा के तहत काम नहीं कर रहा होता।
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धारा 36 का महत्व और उद्देश्य
यह धारा इसलिए भी महत्व रखती है क्योंकि व्यक्तिगत सुरक्षा: यह धारा व्यक्तिगत सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है। यह धारा यह स्पष्ट करती है कि आप किसी भी अपराध के खिलाफ उचित बचाव का अधिकार रखते हैं। वही इस धारा में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आप केवल उतना ही बल प्रयोग कर सकते हैं जितना कि आपकी सुरक्षा के लिए आवश्यक हो वही अगर आप किसी कानूनी मामले में फंस गए हैं तो आपको किसी वकील से संपर्क करना चाहिए।