Article 142 full details: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है, जिसमें उसने यह स्पष्ट किया कि एक दलित (SC) व्यक्ति के गैर-दलित (General) पत्नी के बच्चे को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। यह आदेश भारत सरकार के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दिया गया है, जो न्यायिक कार्यवाही में विशेष परिस्थितियों में उपयुक्त आदेश देने का अधिकार प्रदान करता है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश एक विशिष्ट मामले में दिया, जहां एक दलित पति और एक गैर-दलित पत्नी के बच्चे को आरक्षण का लाभ मिल सके, या नहीं, यह सवाल उठाया गया था। कोर्ट ने कहा कि यदि बच्चे की जाति अनुसूचित जाति (SC) के अंतर्गत नहीं आती है, तो उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा, चाहे उसके पिता दलित हों।
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है, जिसमें यह तय किया गया कि यदि एक दलित पति की पत्नी गैर-दलित है, तो उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलेगा या नहीं, यह निर्भर करेगा कि बच्चे की जाति क्या है। इस मामले में कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत आदेश दिया है कि यह मुद्दा इस आधार पर तय किया जाएगा कि बच्चे के जन्म के समय उसकी जाति क्या थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए कहा कि केवल पिता की जाति के आधार पर आरक्षण का निर्धारण नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि जन्म के समय के अनुसार, बच्चे की जाति का निर्धारण किया जाता है, और इस मामले में चूंकि माता-पिता में से एक दलित नहीं है, इसलिए बच्चे को आरक्षण के अधिकार का लाभ नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह छह महीने के भीतर बच्चों के लिए SC प्रमाणपत्र प्राप्त करें और उनके शिक्षा पीजी तक के संबंधित सभी खर्चों का जिम्मा उठाएं. इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने पति को ₹42 लाख का एकमुश्त भुगतान करने और रायपुर में एक प्लॉट पत्नी को देने का निर्देश दिया.
इसके अलावा यह भी कहा गया कि तलाक के बाद, बच्चों की परवरिश मां के घर में होगी, लेकिन उन्हें SC का दर्जा मिलेगा. इससे उन्हें सरकारी शिक्षा और नौकरियों में लाभ होगा. कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच दर्ज सभी मामलों को खारिज कर दिया और बच्चों को उनके पिता से मिलाने के लिए निर्देश दिए. इन सबके बीच आइए जानते हैं कि आखिर संविधान के अनुच्छेद 142 में ऐसा क्या शक्ति है जिसे सुप्रीम कोर्ट यूज कर सकता है.
अनुच्छेद 142 क्या है ? Article 142 full details
Article 142 full details : अनुच्छेद 142 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट को विशेष मामलों में न्याय देने का अधिकार देता है, जब सामान्य कानून से बाहर की स्थिति उत्पन्न होती है। यह अदालत को ऐसा आदेश देने का अधिकार प्रदान करता है, जो किसी विशेष मामले में न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो। यह मामला एक ऐसी स्थिति से संबंधित था, जिसमें एक दलित व्यक्ति की शादी एक गैर-दलित महिला से हुई थी। बच्चे के आरक्षण के अधिकार को लेकर विवाद था, क्योंकि बच्चे की जाति को लेकर सवाल उठाया गया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि जाति का निर्धारण केवल मां और पिता की जाति पर आधारित होता है, और चूंकि इस मामले में मां गैर-दलित थीं, इसलिए बच्चे को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
आपको बता दें, इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि आरक्षण का लाभ केवल उस जाति के व्यक्तियों को मिलेगा, जिनके माता-पिता में से कम से कम एक व्यक्ति आरक्षित जाति (जैसे दलित) से संबंधित हो। इस प्रकार, गैर-दलित पत्नी के बच्चे को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा, भले ही पिता दलित वर्ग से संबंधित हों।
कैसे काम करता अनुच्छेद 142
अनुच्छेद 142 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो भारतीय न्यायपालिका को विशेष अधिकार प्रदान करता है। यह अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) को संविधान के तहत अपने आदेशों और निर्णयों को लागू करने के लिए किसी भी आवश्यकता के अनुसार आदेश देने का अधिकार देता है, चाहे वह किसी भी अन्य कानून या प्रावधान से अलग हो। इस अनुच्छेद के तहत सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह संविधान के उद्देश्य को पूरा करने के लिए न्यायपालिका के आदेशों को लागू करने हेतु विशेष आदेश दे सकता है, और किसी भी परिस्थिति में उसे अदालतों के अन्य आदेशों और फैसलों से संबंधित बंधन से मुक्त किया जा सकता है। यह शक्ति न्यायिक कार्यवाही को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए है, और इसे एक न्यायिक व्यवस्था के रूप में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सही ठहराया गया है।
अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ मामलों में अपने आदेशों को लागू करने के लिए इस अधिकार का उपयोग किया है। जैसे, कोर्ट ने राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे किसी विशेष परिस्थिति में मुआवजा या अन्य सहायता दें, जो अन्य विधियों के तहत नहीं किया जा सकता था।
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