क्या भारत में गैर कानूनी है लिव इन रिलेशनशिप? क्या कहती हैं IPC की धाराएं

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Live in relationship law in Hindi – हिन्दू समाज में शादी विवाह को लेकर काफी ज्यादा रीति-रिवाज हैं. जो हमारी सनातनी परंपरा का सबसे बड़ा प्रतीक है लेकिन आज के युग में विवाह से पहले की एक नयी परंपरा शुरू हो गई है जिसका सीधा और मतलब शादी न हुई हो उसके पहले भी कपल साथ रह सकते हैं. जिसे आजकल हम नए रूप में ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ के रूप में जानते हैं.

लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या हमारा संविधान और हमारा कानून इस रिश्ते को सही ठहराता है या नहीं क्या इसकोलेकर नियम है? आपने आफताब पूनावाला और श्रद्धा का केस तो सुना ही होगा दरअसल वो भी दोनों इसी तरह के रिश्ते में थे जिसका न कोई सर था न कोई पैर. अब इसको लेकर घरवाले क्या सोंचते हैं ये जानना भी बेहद जरूरी है.

क्या होता है लिव-इन-रिलेशनशिप (Live-In-Relationship)

प्रेमी जोड़े का शादी किए बिना लंबे समय तक एक घर में साथ रहना लिव-इन रिलेशनशिप कहलाता है. लिव-इन रिलेशनशिप की कोई कानूनी परिभाषा अलग से कहीं नहीं लिखी गई है. आसान भाषा में इसे दो व्यस्कों का अपनी मर्जी से बिना शादी किए एक छत के नीचे साथ रहना कह सकते हैं. कई कपल इसलिए लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं, ताकि यह तय कर सकें कि दोनों शादी करने जितना कंपैटिबल हैं या नहीं. कुछ इसलिए रहते हैं क्योंकि उन्हें पारंपरिक विवाह व्यवस्था कोई दिलचस्पी नहीं होती है.

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट की माने तो  चार दशक पहले साल 1978 में बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन (Badri Prasad vs Director Of Consolidation) के केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी थी. यह माना गया था कि शादी करने की उम्र वाले लोगों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप किसी भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई कपल लंबे समय से साथ रह रहा है, तो उस रिश्ते को शादी ही माना जाएगा. इस तरह कोर्ट ने 50 साल के लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया था.

क्या मौलिक अधिकारों में है लिव इन रिलेशनशिप की जड़? न्यायपालिका से संबंधित खबरों को आसान भाषा में बताने वाले मीडिया संस्थान लाइव लॉ की मानें, तो लिव-इन रिलेशनशिप की जड़ कानूनी तौर पर संविधान के अनुच्छेद 21 में मौजूद है. अपनी मर्जी से शादी करने या किसी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की आजादी और अधिकार को अनुच्छेद 21 से अलग नहीं माना जा सकता.

Live in relationship law – साल 2001 में पायल शर्मा बनाम नारी निकेतन केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक आदमी और औरत को अधिकार है अपनी मर्जी से एक-दूसरे के साथ बिना शादी किए लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का. कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि हालांकि हमारा समाज लिव-इन रिलेशनशिप को अनैतिक मानता है, मगर कानून के हिसाब से न तो ये गैर-कानूनी है और न ही अपराध है.

इन पर भी लागू होता है डोमेस्टिक वायलेंस का कानून

इस रिलेशनशिप से जुड़े एक केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रोटेक्शन ऑफ़ वीमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस, 2005 की धारा 2f में डोमेस्टिक रिलेशनशिप की जो परिभाषा है उसमे लिव इन रिलेशनशिप भी शामिल है. जिसका साफ़ मतलब निकलता है कि जिस तरह का एक्ट शादीशुदा दम्पतियों को लेकर है वही एक्ट लिव इन रिलेशन में भी लागू होगा.

Live in relationship law in India

जस्टिस मलिमथ की कमेटी के सुझाव पर पत्नी की परिभाषा की पुनर्व्याख्या के लिए CRPC की धारा 125 में संशोधन किया गया था. समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों का पालन करते हुए यह सुनिश्चित किया गया था कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं या वो महिलाएं जिन्हें उनके पार्टनर ने छोड़ दिया है, उन्हें वाइफ (पत्नी) का दर्जा मिले.

लिव इन रिलेशनशिप में अगर बच्चा पैदा हुआ तो उसका क्या?

Tulsa & Ors vs Durghatiya केस में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में पैदा हुए एक बच्चे को राइट टू प्रॉपर्टी (संपत्ति का अधिकार) दिया था. फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा था कि ऐसे बच्चों को नाजायज नहीं माना जाएगा, जब उसके माता-पिता काफी समय से साथ रह रहे थे. लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर भारतीय समाज का नजरिया बहुत सकारात्मक नहीं रहा है. लेकिन न्यायिक फैसलों ने कई मौकों पर लिव-इन रिलेशनशिप की वैधता को साबित किया है. अदालत ने लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं के अधिकार को कानूनी दर्जा भी दिया है.

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