ब्रांड्स की नकल करने वालों हो जाओ सावधान, BNS की धारा 318 ‘काल है काल’

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आजकल ब्रांड पहनना किसे पसंद नहीं है, हर कोई लग्जरी ब्रांड के कपड़े पहनकर अपनी क्रश को इम्प्रेस करना चाहता है। लेकिन कुछ लोगों के लिए ब्रांड्स को अफोर्ड करना मुश्किल होता है, इसलिए ये लोग उन मशहूर ब्रांड्स की फर्स्ट कॉपी या उन ब्रांड्स से मिलते-जुलते नकली ब्रांड्स का विकल्प अपनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये सब गैरकानूनी है। अगर कोई किसी मशहूर कंपनी या ब्रांड के लोगो के साथ छेड़छाड़ करके उनके जैसा मिलता-झूलता हुआ लोगो बनाकर फिर प्रॉडक्ट बेचता है तो यह अपराध है। Bharatiya Nyaya Sanhita, की धारा 318 में इस अपराध के बारे में विस्तार से बताया गया है।

BNS की धारा 318

भारतीय न्यायिक संहिता,की धारा 318 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश दिखना इस आशय से कारित करता है कि वह उस सादृश्य से छल / कपट करे, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि तद्द्वारा छल / कपट किया जाएगा, उसे कूटकरण करना कहा जाता है। हालांकि कूटकरण में यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठीक वैसी ही हो। जब कोई व्यक्ति एक वस्तु को दूसरी वस्तु से मिलता-जुलता बनाता है और समानता ऐसी हो कि कोई भी व्यक्ति धोखा खा जाए कि असली उत्पाद कौन सा है, तो इसे कूटकरण कहा जाता है। सरल शब्दों में कहें तो अगर कोई व्यक्ति किसी चीज की नकल करके उसके जैसी ही कोई दूसरी चीज बनाता है, जो देखने में मूल जैसी ही लगती है और ऐसा करने के पीछे उसका मकसद किसी को धोखा देना है और वह जानबूझकर ऐसा करता है, तो इसे कूटकरण कहा जाता है।

हालांकि कुछ मामलों में, प्रसिद्ध ब्रांड जानबूझकर नकली ब्रांडों की शिकायत नहीं करते हैं क्योंकि नकली ब्रांडों के माध्यम से उन्हें प्रचार भी मिलता है, जो भविष्य में उनके लिए लाभदायक हो सकता है। उदाहरण के लिए, आपने वॉटर ब्रांड बिसलेरी और कपड़ों के ब्रांड एडिडास के कई कॉपी ब्रांड बाजार में देखे होंगे। मशहूर ब्रांड चाहें तो इनकी शिकायत कर सकते हैं, लेकिन अपनी मार्किट स्ट्रेटेजी के कारण वे इन नकली ब्रांडों को बाजार में चलने देते हैं।

क्या है भारतीय न्यायिक संहिता

भारतीय न्यायिक संहिता भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए विशिष्ट अपराधों को निर्दिष्ट और दंडित करती है। आपको बता दें कि यह बात भारतीय सेना पर लागू नहीं होती है। पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय न्यायिक संहिता लागू नहीं होती थी। हालांकि, धारा 370 ख़त्म होने के बाद BNS वहाँ भी लागू हो गया। पहले वहां रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) लागू होती थी।

बीएनएस धारा 318 में चार उप-धाराएँ 

  1. बीएनएस धारा 318 की उपधारा (1): इसमें बताया गया है की धोखा तब होता है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी दूसरे व्यक्ति को गुमराह (Astray) करता है, या उसे गलत जानकारी देकर उसे कुछ ऐसा करने पर मजबूर करता है। जो वह सामान्य परिस्थितियों में नहीं करता। इस धोखे के कारण उस व्यक्ति को किसी भी तरह का नुकसान या हानि हो सकती है। जिसमें उसके शरीर, मन, सम्मान, या संपत्ति का नुकसान शामिल है।
  2. बीएनएस धारा 318 की उपधारा (2): इसमें केवल सेक्शन 318(1) के अपराध की सजा (Punishment) के बारे में बताया गया है। जो भी व्यक्ति किसी के साथ धोखाधड़ी का अपराध करेगा उसे दोषी पाये जाने पर कारावास व जुर्माने (Imprisonment Or fine) की सजा से दंडित किया जा सकता है।
  3. बीएनएस सेक्शन 318 की उपधारा (3): यदि कोई व्यक्ति जिसे किसी अन्य व्यक्ति के हितों की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी दी गई है। यानी जिस व्यक्ति का काम लोगों की मदद करना है जब ऐसा व्यक्ति किसी के साथ धोखाधड़ी करता है। तो उस व्यक्ति को धारा 318(2) में दी गई सजा से ज्यादा सजा व जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।सरल भाषा में समझे तो, इसमें ऐसे लोग आते है जो अपने अधिकार और ज़िम्मेदारी का गलत उपयोग करते है और दूसरों के साथ धोखा करते है। जो की कानूनी रुप से एक गंभीर अपराध माना जाता है।
  4. बीएनएस की धारा 318 (4): इसमें बताया गया है अगर कोई व्यक्ति धोखा देकर या बेईमानी से किसी दूसरे व्यक्ति को इस तरह से बहकाता है। जिससे वह अपनी संपत्ति, पैसे, या कीमती कागजात (जैसे कि किसी जायदाद के दस्तावेज़, बैंक चेक आदि) किसी को सौंप देता है। या फिर धोखे से कोई उसके जरुरी दस्तावेज़ को बदल देता है या नष्ट कर देता है तो ऐसे व्यक्ति को अन्य सभी उपधाराओं (Sub Sections) की सजा से अधिक सजा व जुर्माने से दंडित (Punished) किया जा सकता है।

 

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