अमेरिका के बाद अब यूके में गूंजा जय भीम का नारा

देश के लिये जिन्होंने विलाश को ठुकराया…गीरे हुये को जिन्होंने स्वाभिमान सिखाया…जिन्होंने हम सबको तूफानों से टकराना सिखाया…देश का वो था अनमोल दीपक जो बाबा साहेब कहलाया…डॉ अंबेडकर कहते थे कि पढ़ों…जमकर पढ़ो…आगे बढ़ना है तो पढ़ो…समाज में इज्जत पानी है तो पढो…अपने अधिकार की लड़ाई लड़नी है तो पढ़ो…अपने समाज को हक दिलाना है तो पढ़ो…बाबा साहेब ने अपने समाज का भविष्य संवारने के लिए इतने संघर्ष किए कि उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता…जिस दौर में दलितों को पानी का अधिकार नहीं था, अपनी आवाज उठाने का अधिकार नहीं था…उस दौर में उन्होंने आंदोलन किए… जिस दौर में दलितों को पढ़ने का अधिकार नहीं था…उस दौर में उन्होंने पढ़ाई चुनी और वो कर दिखाया, जो भारतीय इतिहास में आज तक कोई कर नहीं पाया है…यही कारण है कि आज पूरी दुनिया बाबा साहेब के चरणों में शीश नंवाती है…इसी बीच फेडरेशन ऑफ अंबेडकराइट एंड बुद्धिस्ट ऑर्गनाइजेशन (FABO) यूके के महासचिव पंकज शामकुंवर ने बाबा साहेब को लेकर एक ऐसी टिप्पणी की है, जिसके बारे में आपका जानना बहुत आवश्यक है…

पंकज शामकुंवर ने बाबा साहब की प्रशंसा में क्या कहा 

पंकज शामकुंवर ने बाबा साहब की प्रशंसा करते हुए कहा, “डॉ. बीआर अंबेडकर एक प्रगतिशील विचारक थे। संविधान, जो हमारे लोकतंत्र का आधार है, ने हमें समानता, बंधुत्व और स्वतंत्रता के आधार पर काम करने वाले मौलिक अधिकार और सिद्धांत दिए हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “डॉ. बीआर अंबेडकर का भारतीय लोकतंत्र में सबसे बड़ा योगदान महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के रूप में है…आज दलित महिलाएं देश की अन्य महिलाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, जो गर्व की बात है।”

यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग ने पिछले साल दिसंबर में बाबासाहेब डॉ. बीआर अंबेडकर के 68वें परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर एक स्मारक कार्यक्रम आयोजित किया था। यह कार्यक्रम लंदन के एल्डविच में इंडिया हाउस के अंबेडकर हॉल में फेडरेशन ऑफ अंबेडकराइट एंड बुद्धिस्ट ऑर्गनाइजेशन यूके (FABO) के सहयोग से आयोजित किया गया था।

ब्रिटेन में भारत के कार्यवाहक उच्चायुक्त सुजीत घोष ने कहा कि “बाबासाहेब डॉ. बीआर अंबेडकर का परिनिर्वाण दिवस एक दूरदर्शी नेता, समाज सुधारक और भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता की याद का एक पवित्र दिन है। डॉ. अंबेडकर की न्याय की गहरी भावना और स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता ने एक ऐसे संविधान के निर्माण का मार्गदर्शन किया, जिसने न केवल एक लोकतांत्रिक भारत की नींव रखी बल्कि सदियों पुरानी सामाजिक पदानुक्रम को खत्म करने का लक्ष्य भी रखा।”

उन्होंने आगे कहा, “डॉ. अंबेडकर का योगदान संविधान के प्रारूपण से कहीं आगे तक फैला हुआ है… उन्होंने माना कि शिक्षा एक शक्तिशाली समानता कारक के रूप में कार्य करती है, जातिगत बाधाओं को तोड़ती है और हाशिए पर पड़े लोगों में आत्म-सम्मान की भावना पैदा करती है।”

डॉ. अंबेडकर का योगदान

बात दें कि 14 अप्रैल, 1891 को जन्मे बाबासाहेब अंबेडकर एक भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे, जिन्होंने दलितों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया और साथ ही महिलाओं एवं श्रमिकों के अधिकारों की वकालत की। 6 दिसंबर 1956 को उन्होंने अपना देह त्याग दिया था. यह बाबा साहेब की विद्वता और सामर्थ्य ही है कि आज भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में पिछड़ा समुदाय उन्हें अपना आधार स्तंभ मानता है…वैश्विक नेता उनका गुणगान करते हैं और उनके सम्मान में शीश झुकाते हैं. अमेरिका से लेकर आस्ट्रेलिया और अब यूके तक में जय भीम का नारा गूंज रहा है…

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