आप आये दिन ये खबरें सुनते होंगे कि चीन, भारतीय सीमा पर रोड बना रहा है…चीन ने भारतीय सीमा के पास गांव बसा दिए हैं…चीन, भारत के जमीन पर कब्जा कर रहा है…ऐसी तमाम चीजें अक्सर पढ़ने और सुनने को मिलती हैं लेकिन दूसरी ओर सरकार की ओर से कहा जाता है – सब चंगा सी! लेकिन सच्चाई ये है कि कुछ भी चंगा नहीं है..चीन की विस्तारवादी नीति पूरी दुनिया के लिए खतरनाक है. चीन अपने आस पास के करीब सभी छोटे देशों पर कब्जा जमा चुका है…चीन की फाइव फिंगर पॉलिसी में भारत के अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और लद्दाख जैसे राज्य आते हैं..और चीन की नजर लंबे समय से इन राज्यों पर है…चीन किसी का दोस्त हो ही नहीं सकता…चीन ने सभी को धोखा दिया है..हालांकि, नेहरु चीन को समझने में भूल कर बैठे थे. लेकिन ऐसा नहीं है कि किसी ने चीन को लेकर उन्हें सतर्क नहीं किया था…उन्हें संसद में चीन की रणनीति को लेकर सतर्क किया गया था…एक बार नहीं बल्कि 2-2 बार किया गया था…और खुद डॉ भीमराव अंबेडकर ने चीन को लेकर नेहरु को सतर्क किया था लेकिन किसी ने तब उनकी बात को तवज्जों नहीं दिया और आज स्थिति क्या है…आप बेहतर जानते हैं…
चीन को लेकर बाबा साहेब ने क्या कहा था
दरअसल, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु, चीन को लेकर काफी शॉफ्ट थे..चीन को लेकर उनका रवैया अग्रेसिव नहीं रहा..वो चीन को दोस्त समझने की भूल कर बैठे थे और यही कारण था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को ऑफर की गई सीट, चीन को मिल गई. नेहरु की वजह से चीन UNSC का परमानेंट मेंबर बन गया और भारत आज तक इसका स्थायी सदस्य नहीं बन पाया है. आज के समय में UNSC में भारत के तमाम मुद्दों पर चीन अड़चन लगाता है..
चीन को लेकर अंबेडकर तो शॉफ्ट थे लेकिन उस दौर के कई नेताओं को चीन के साथ भारत की दोस्ती पसंद नहीं थी. बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर चीन के मंसूबों को आज से 75-77 साल पहले ही भांप गए थे. चीन के ट्रैक रिकॉर्ड और उसके विस्तारवादी दृष्टिकोण को देखते हुए, बाबा साहेब ने पहले ही कहा था कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कम्युनिस्ट चीन के साथ जुड़ाव की नीति एक गलती थी और इसके बजाय भारत को अपनी विदेश नीति को अमेरिका के साथ जोड़ना बेहतर होता। और जोड़ा भी जा सकता था, क्योंकि दोनों देश लोकतांत्रिक हैं।
इतिहास पर नजर डालें तो 1951 में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करते हुए बाबा साहेब अंबेडकर ने चीन का जिक्र करते हुए कहा था कि ‘भारत को संसदीय लोकतंत्र और तानाशाही की साम्यवादी पद्धति के बीच चयन करना होगा और फिर अंतिम निर्णय पर पहुंचना होगा।’ इसके साथ ही बाबा साहेब, नेहरू के ‘हिंदी-चीनी भाई भाई’ दृष्टिकोण के ख़िलाफ़ थे और भारत की तिब्बत नीति से असहमत थे। साथ ही, अंबेडकर का मानना था कि भारत को किसी वैश्विक शक्ति के अच्छे इरादों का इंतजार नहीं करना चाहिए, बल्कि भारत को अपनी सामरिक शक्ति को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए।
इसके साथ ही बाबा साहेब 29 अप्रैल 1954 को भारत और चीन के बीच हुए पंचशील सिद्धांत के खिलाफ भी थे. उनका मानना था कि राजनीति में पंचशील आदर्शों के लिए कोई स्थान नहीं है। वहीं बाबा साहब ने ये तक कहा था कि, ‘जब तक उत्तरी सीमा भारत-चीन के बजाय पहले जैसी भारत-तिब्बत नहीं होती, तब तक भारत के लिए चीन का ख़तरा हमेशा बना रहेगा। तिब्बत पर कब्जा करते समय माओ ने साफ कह दिया था कि तिब्बत तो चीन की हथेली की तरह है, जिसकी पांच उंगलियां लद्दाख, सिक्किम, नेपाल, भूटान और अरुणाचल हैं. इस बयान को हल्के में नहीं लेना चाहिए। इसके जरिए चीन दक्षिण पूर्व एशिया की महाशक्ति बनना चाहता है।
बाबा साहेब की चेतवानी
देखा जाए तो चीन तिब्बत, पूर्वी तुर्कमेनिस्तान, दक्षिणी मंगोलिया के अलावा हांगकांग और ताइवान में भी किसी न किसी रूप में अपनी विस्तारवाद की नीति अपना चुका है। जबकि पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए दक्षिण चीन सागर में चीन की हालिया और स्पष्ट विस्तारवाद नीति को बड़ी चिंता के साथ देख रही है. दक्षिण एशिया में छोटे पड़ोसी देशों में इसकी घुसपैठ पर कम ध्यान दिया गया है। नेपाल और भूटान इसके उदाहरण हैं। नेपाल के साथ दोस्ती के अपने दावे के बावजूद, चीन ने “सलामी स्लाइसिंग” के माध्यम से नेपाल के कुछ हिस्सों पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया है। चीन ने भूटान को भी नहीं बख्शा, जो भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित एक छोटा सा देश है। बाबा साहेब ने इस पर अपने विचार उसी समय व्यक्त किये थे जब भारत आजाद हुआ था और पंडित नेहरू की सरकार भारतीय विदेश नीति का निर्धारण कर रही थी।
इन सब चीजों को देखते हुए कई विश्लेषकों का मानना है कि भारत ने चीन के खिलाफ विदेश नीति बनाने में गलती की थी और अगर पंडित नेहरू ने अंबेडकर के मुताबिक विदेश नीति बनाई होती तो शायद भारत की स्थिति कुछ और होती।