कहते हैं मिलने से फासले कम हो जाते हैं लेकिन सोच अलग हो तो मिलने से भी फासले कभी खत्म नहीं होते और यह बात बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर सटीक बैठती है. क्योंकि बाबा साहेब और महात्मा गाँधी के बीच जो फासले थे वो मिलने के बाद भी कभी खत्म नही हुए. गुलामी की जंजीरों में बंधे भारत को आजाद कराने में बाबा साहेब और महात्मा गाँधी का अहम योगदान रहा. कई मुद्दों पर इनके विचार एक समान थे तो वहीं, कई मुद्दों पर उनके बीच तल्खियां भी थी, जिसके कारण उनके फासले कम नहीं हुए. और कहीं न कहीं यही कारण रहा, जिसकी वजह से बाबा साहेब ने गांधी को कभी महात्मा नहीं कहा.
बाबा साहेब अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच विवाद
पहला विवाद
बाबा साहेब और महात्मा गाँधी के बीच पहला विवाद अछूतों को लेकर था और इस मामले पर ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी बने. गांधी के अनुसार, यदि जाति व्यवस्था से छुआ-छूत जैसे अभिशाप को बाहर कर दिया जाए तो पूरी व्यवस्था समाज के हित में काम कर सकती है. वहीं, बाबा साहेब ने जाति व्यवस्था को पूरी तरह से नष्ट करने की बात कही. तो वहीं, अंबेडकर के अनुसार, जबतक समाज में जाति व्यवस्था मौजूद रहेगी, छुआ-छूत जैसे अभिशाप नए-नए रूप में समाज में पनपते रहेंगे. इन दोनों के विचार अलग-अलग होने की वजह से इस मामले को लेकर दोनों के बीच तकरार होता रहा.
दूसरा विवाद गांव को लेकर था. जहाँ गाँधी ने देश के विकास के लिए लोगों से गांव का रुख करने को कहा तो वहीं अंबेडकर ने लोगों से गांव छोड़कर शहरों का रुख करने की बात कही. बाबा साहेब का मानना था कि गांव को छोड़ना इसलिए जरूरी है क्योंकि आर्थिक उन्नति और बेहतर शिक्षा सिर्फ शहरों में मिल सकती है और बिना इसके दलित समाज को विकास के चक्र में लाना नामुमकिन है.
तीसरा विवाद सत्याग्रह आन्दोलन को लेकर रहा. उन्होंने ऊंची जातियों को सत्याग्रह के लिए प्रेरित किया. उनका मानना था कि छुआ-छूत जैसे अभिशाप को खत्म करने का बीड़ा ऊंची जातियों के लोग उठा सकते हैं. तो वहीं अंबेडकर का मानना था कि सत्याग्रह पूरी तरह से निराधार है. उनके मुताबिक सत्याग्रह के रास्ते ऊंची जाति के हिंदुओं का हृदय परिवर्तन नहीं किया जा सकता क्योंकि जाति प्रथा से उन्हें भौतिक लाभ होता है और इस लाभ का त्याग वह नहीं कर सकते.
चौथा विवाद समाज की पैरवी करने को लेकर था
महात्मा गांधी राज्य में अधिक शक्तियों को निहित करने के विरोधी थे. उनकी कोशिश थी कि ज्यादा से ज्यादा शक्तियों को समाज में निहित किया जाए और इसके लिए वह गांव को सत्ता का प्रमुख इकाई बनाने के पक्षधर थे, लेकिन आंबेडकर समाज के बजाए राज्य को ज्यादा से ज्यादा ताकतवर बनाने की पैरवी करते थे.
अंबेडकर की जीवनी ‘डॉक्टर आंबेडकर: लाइफ एंड मिशन’ में धनंजय कीर लिखते हैं कि “अंबेडकर ने महात्मा गांधी से कहा कि अगर आप अछूतों के खैरख्वाह होते तो आपने कांग्रेस का सदस्य होने के लिए खादी पहनने की शर्त की बजाए अस्पृश्यता निवारण को पहली शर्त बनाया होता।”
पांचवा विवाद अछूतों की समस्या को लेकर था
14 अगस्त, 1931 का दिन वो दिन था, जब महात्मा गांधी और अंबेडकर के बीच मुलाकात हुई थी। उस वक्त महात्मा गांधी ने अंबेडकर से कहा था कि “मैं अछूतों की समस्याओं के बारे में तब से सोच रहा हूं जब आप पैदा भी नहीं हुए थे। हैरानी होती है कि इसके बावजूद मुझे आप उनका हितैषी नहीं मानते हैं।”
वहीं, इस सवाल का जवाब अंबेडकर की जीवनी ‘डॉक्टर आंबेडकर: लाइफ एंड मिशन’ में मिला, जिसमे धनंजय कीर लिखते हैं कि “अंबेडकर ने महात्मा गांधी से कहा, “किसी भी व्यक्ति जिसने अपने घर में एक अछूत व्यक्ति या महिला को नौकरी पर नहीं रखा या उसने एक अछूत व्यक्ति के पालनपोषण का जिम्मा न उठाया हो या कम से कम हफ्ते में एक बार किसी अछूत व्यक्ति के साथ खाना न खाया हो, उसे कांग्रेस का सदस्य बनने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए थी। आपने कभी भी किसी जिला कांग्रेस पार्टी के उस अध्यक्ष को पार्टी से नहीं निकाला, जो मंदिरों में अछूतों के प्रवेश का विरोध करता पाया गया हो।”