Dr. Ambedkar love letter – बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर से जुड़ी कई कहानियां पब्लिक डोमेन में हैं. उन्होंने दलितों के उत्थान और उनकी हक की लड़ाई लड़ी, उन्हें समाज में सम्मान दिलाया. उनके द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों की लिस्ट काफी लंबी है लेकिन क्या आप बाबा साहेब के व्यक्तिगत जीवन से परिचित हैं? क्या आप जानते हैं कि संविधान बनाने वाले बाबा साहेब लव लेटर भी लिखते थे…
दरअसल, बाबा साहेब की पहली शादी 4 अप्रैल 1906 को 9 साल की रामी से हुई थी, जिन्हें लोग रमाबाई भी कहते थे…लेकिन बाबा साहेब के लिए वो पहले दिन से रामू थीं. नौ साल की उम्र में रमा ने घर ग्राहस्त्थी संभाल ली. कम उम्र में शादी होने की वजह से रमा पढ़ाई नहीं कर पाईं. असल में वो दौर ही कुछ ऐसा था. बाबा साहेब ने भी अपने बचपन में कम परेशानियां नहीं झेली…स्कूल में शिक्षा हो या समाज में सम्मान…बाबा साहेब के लिए हर चीज हासिल करना मुश्किल रहा. पर ये सब रमा बाई के आने के बाद आसान होने लगा था.
रमाबाई ने संभाल रखा था पूरा घर
रमा के लिए भीमराव अम्बेडकर हमेशा उनके साहेब ही रहे. साहेब ने अपनी रामू को घर ही पढ़ाया-लिखाया! कम से कम इतना कि वो कागजों को लिखने में उनकी मदद कर सकें. जब तक अम्बेडकर भारत में थे, उन्होंने रमाबाई के भरोसे घरबार छोड़ रखा था और पूरा ध्यान इस बात पर लगाया कि कैसे दलितों को समाज में उचित स्थान दिलाया जाए? Dr. Ambedkar love letter
जब अम्बेडकर उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले गए तब पीछे से रमा ने उनके हिस्से की सारी जिम्मेदारी उठा ली. वो लोगों के घरों में काम करतीं, उपले बनाती और बाजार में बेचतीं.. इन सबसे जो पैसे मिलते उनसे घर का खर्च चलाती और एक हिस्सा मनीआर्डर करके साहेब तक पहुंचातीं. जब तक साहेब विदेश में रहे, उनकी रमा से बात नहीं हुई… उनके बीच संवाद का एक ही माध्यम था.. पत्र. और यही से शुरु हुआ बाबा साहेब अंबेडकर के प्रेम पत्रों का सिलसिला.
डॉ. अंबेडकर का लव लेटर – Dr. Ambedkar love letter
विदेश में रहते हुए 30 दिसंबर, 1930 को बाबा साहेब ने रमा के नाम खत लिखा था. जिसका एक हिस्सा हम आपको सुनाते हैं…
रमा! कैसी हो रमा तुम?…तुम्हारी और यशवंत (अंबेडकर के बेटे थे) की आज मुझे बहुत याद आई. तुम्हारी यादों से मन बहुत ही उदास हो गया है. शायद मन में बहुत सारी बातें उमड़ रही हैं. मन बहुत ही विचलित हो गया है और घर की, तुम सबकी बहुत याद आ रही है. मुझे तुम जहाज पर छोड़ने आयी थी. हर तरफ मेरी जय-जयकार गूंज रही थी और ये सब तुम देख रही थी. तुम्हारा मन भर आया था, कृतार्थता से तुम उमड़ गयी थी. तुम्हारी आंखें, जो शब्दों से बयां नहीं हो पा रहा था, सब बोल रही थीं.
अब यहां लंदन में इस सुबह ये बातें मन में उठ रही हैं. दिल कोमल हो गया है. जी में घबराहट सी हो रही है. रमा, दरिद्रता, गरीबी के सिवाय हमारा कोई साथी नहीं. मुश्किलें और दिक्कतें हमें छोड़ती नहीं हैं. सिर्फ अंधेरा ही है. दुख का समंदर ही है. हमारा सूर्योदय हमको ही होना होगा रमा. इसलिए कहता हूं कि यशवंत को खूब पढ़ाना. मैं समझता नहीं हूं, ऐसा नहीं है रमा, मैं समझता हूं कि तुम इस आग में जल रही हो. पत्ते टूटकर गिर रहे हैं और जान सूखती जाए ऐसी ही तुम होने लगी हो. पर रमा, मैं क्या करूं?
रमा, तुम मेरी जिंदगी में न आती तो? तुम मन-साथी के रूप में न मिली होती तो? तो क्या होता? मात्र संसार सुख को ध्येय समझने वाली स्त्री मुझे छोड़ के चली गई होती. आधे पेट रहना, उपला (गोइठा) चुनने जाना या गोबर ढूंढकर उसका उपला थापना या उपला थापने के काम पर जाना किसे पसंद होगा? चूल्हे के लिए ईंधन जुटाकर लाना, मुम्बई में कौन पसंद करेगा? घर के चिथडे़ हुए कपड़ों को सीते रहना. इतना ही नहीं, ‘एक माचिस में पूरा माह निकालना है, इतने ही तेल में और अनाज, नमक से महीने भर का काम चलाना चाहिए’, मेरा ऐसा कहना. गरीबी के ये आदेश तुम्हें मीठे नहीं लगते तो? तो मेरा मन टुकड़ा-टुकड़ हो गया होता. मेरी जिद में दरारें पड़ गई होतीं. मुझे ज्वार आ जाता और उसी समय तुरन्त भाटा भी आ जाता. मेरे सपनों का खेल पूरी तरह से तहस-नहस हो जाता.
ये खत अंबेडकर ने लंदन में अपनी पढ़ाई के दौरान अपनी पत्नी रमाबाई को लिखा था.जब अम्बेडकर ने नौकरी शुरू की तो वे अपनी कमाई रमा को देने लगे. जब जरूरत होती वे रमा से पैसे मांग लेते. इस बीच वे अधिकांश समय अपने घर से दूर रहते. रमा उनकी कमी पूरी करने की कोशिश करतीं. शादीशुदा जीवन में उन्हें 5 बार मां बनने का सुख मिला पर उनमें से केवल 1 संतान ही बच पाया और वही थे यशवंत अंबेडकर.
अम्बेडर चाहते थे कि उनका इकलौता बेटा यशवंत उच्च शिक्षा हासिल करे, जिसके लिए रमाबाई ने खूब मेहनत की. उन्होंने अपने बेटे को काबिल बनाने की हर कोशिश की पर एक दिन वो बीमारी से हार गईं. उचित देख-रेख और चिकित्सा के अभाव में केवल 38 साल की उम्र में रमा की मृत्यु हो गई और अम्बेडकर अकेले रह गए. पर जाने से पहले रमाबाई ने अम्बेडकर को उस मुकाम तक पहुंचने में अपना पूरा सहयोग किया, जहां से उन्हें सम्मान के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा. बाबा साहेब ने थॉट्स ऑफ पाकिस्तान नाम से एक किताब लिखी थी, जिसमें उन्होंने रमाबाई का भी जिक्र किया था. जाहिर है कि बाबा साहेब के पीछे रमाबाई वो मजबूत कड़ी बनी रही. जिस पर टिक कर बाबा साहेब ने पूरी लड़ाई लड़ी और भारत को संविधान दिया.