बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर न होते…तो आज आप नहीं होते..हम नहीं होते और शायद ये देश भी खुली हवा में सांस नहीं ले पाता…बाबा साहेब सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पूजनीय हैं..कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी में उनके द्वारा लिखी गई किताबें पढ़ाई जाती है…दुनिया के कई देशों में उनकी किताबों का अनुवाद कराया जा रहा है, जो काफी बड़ी बात है. बाबा साहेब अंबेडकर की पुस्तक एनिहिलेशन ऑफ कास्ट को काफी पहले ही इटली की आधिकारिक भाषा इतालवी में ट्रांसलेट कराया गया था और अब इजरायल ने भी बाबा साहेब की इस पुस्तक को अपनी आधिकार भाषा हिब्रू में टांसलेट कराया है..आखिर इस किताब में ऐसा है क्या, जो दुनिया को अपनी ओर आकर्षित कर रही है…आज का लेख इसी मसले पर है.
Annihilation of Caste
दरअसल, साल 1936 में, बाबा साहेब अंबेडकर को लाहौर में जात-पात तोड़क मंडल के वार्षिक सम्मेलन में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। आयोजकों ने पहले ही बाबा साहेब से उनके भाषण की प्रतिलिपि मांग ली क्योंकि उन्हें भाषण की संभावित विवादास्पद प्रकृति के बारे में कुछ आशंकाएँ थीं…बाबा साहेब ने अपने उस भाषण में हिंदू धर्म में फैले जातिवाद और वेदों की प्रकृति पर सवाल उठाए थे…ऐसे में जात पात तोड़क मंडल नामक संगठन ने बाबा साहेब से उस भाषण में बदलाव करने को कहा लेकिन बाबा साहेब ने ऐसा करने से मना कर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि आयोजकों ने निमंत्रण वापस ले लिया और बाबा साहेब उस वार्षिक सम्मेलन में नहीं जा पाए.
उसी वर्ष बाबा साहेब ने “Annihilation of Caste” शीर्षक से अपने उस भाषण को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। पुस्तक की बिक्री तेज़ी से हुई। पुस्तक की सफलता ने डॉ अंबेडकर को पुस्तक का दूसरा संस्करण निकालने के लिए प्रेरित किया। पुस्तक के दूसरे संस्करण में उन्होंने पुस्तक की सफलता पर आश्चर्य व्यक्त किया
बाबा साहब द्वारा लिखी ये पुस्तक कई धारणाओं को पलट देती है और हिंदू धर्म में फैली कुप्रथाओं की आलोचना में काफी मुखर है। Annihilation of Caste निबंधों का एक संग्रह है, जो जाति व्यवस्था के हर बचाव को ध्वस्त कर देता है। डॉ अंबेडकर ने इस पुस्तक के माध्यम से तर्क दिया कि यह केवल श्रम को विभाजित करने का एक तंत्र नहीं था, बल्कि एक स्वाभाविक रूप से अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण प्रणाली थी जो लोगों को उनके मौलिक मानवाधिकारों और सम्मान से वंचित करती थी।
इजरायल में भी हुआ है इसका ट्रांसलेशन
वो लिखते हैं: “श्रम विभाजन के एक रूप के रूप में, जाति व्यवस्था एक और गंभीर दोष से ग्रस्त है। जाति व्यवस्था द्वारा लाया गया श्रम विभाजन पसंद पर आधारित विभाजन नहीं है। व्यक्तिगत भावना, व्यक्तिगत वरीयता, का इसमें कोई स्थान नहीं है। यह पूर्वनियति की हठधर्मिता पर आधारित है।”
बाबा साहब ने अपने निबंध में हिंदू समाज पर जोरदार हमला किया, उन्होंने लिखा, “हिंदुओं ने न केवल असभ्य लोगों को सभ्य बनाने के मानवीय उद्देश्य के लिए कोई प्रयास किया, बल्कि उच्च जाति के हिंदुओं ने जानबूझकर हिंदू धर्म के दायरे में आने वाली निचली जातियों को उच्च जातियों के सांस्कृतिक स्तर तक बढ़ने से रोका है।” इस किताब के 87 साल के इतिहास में इसे मराठी, बंगाली आदि सहित लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
डॉ अंबेडकर की मौलिक, क्रांतिकारी पुस्तकों के प्रकाशित होने के 87 साल बाद यानी 2023 में इजरायली वास्तुकार और लेखक शेरोन रोटबार्ड इसे इजरायल ले गए। रोटबर्ड ने कहा, “मैं अंबेडकर से बहुत प्रभावित था। मुझे लगता है कि वह 20वीं सदी के सबसे प्रतिभाशाली लोगों में से एक थे।” इस पुस्तक ने उन्हें भारतीय समाज में जाति विभाजन को समझने में मदद की, साथ ही उन्हें इज़राइल और यूरोपीय समाजों को समझने में भी मदद की। उन्होंने कहा, “उनके लेखन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण यूनिवर्सल संदेश है। वे ऐसे सिद्धांतों से निपटते हैं जिन्हें लागू किया जा सकता है या अन्य समाजों को भी नई अंतर्दृष्टि दे सकते हैं।”
रोटबर्ड ने कहा कि सामाजिक मतभेदों पर डॉ अंबेडकर के विचार केवल भारत तक सीमित नहीं हो सकते। जाति का सवाल और डॉ अंबेडकर का पाठ व्यापक निहितार्थ वाली समस्या को संबोधित करता है। लेकिन इनका दुनिया भर में प्रचलित मार्क्सवादी सोच पर भी असर पड़ता है जो केवल वर्गीय दरारों को पहचानती है। रोटबर्ड ने कहा, “तुलना किए बिना, मुझे लगता है कि मुझे यह बहुत उपयोगी लगता है कि डॉ अंबेडकर ने समाज के विचार और मतभेदों के विचार को इस तरह से अवधारणाबद्ध किया कि किसी तरह मार्क्स की भौतिकवादी सोच को सुधारा जा सके।”