बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने समाज में दलितों को उनका हक दिलाने में अपना जीवन खपा दिया… उनके संघर्ष के कारण ही दलितों को अधिकार मिलें और समाज में उनकी स्थिति को सुधारने का प्रयास हुआ..बाबा साहेब ने दलितों के जीवन से मरण तक के अधिकार सुनिश्चित किए लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आजादी के 20-21 साल बाद तक यह पता नहीं चल पाया था कि आखिर बाबा साहेब का जन्म किस स्थान पर हुआ था..1971 में उनके जन्म स्थान की खोज हुई…वह घर भी मिला, जिसमें डॉ अंबेडकर जन्में थे लेकिन देखते ही देखते उनके अनुयायियों ने बाबा साहेब के जन्मस्थली को तोड़ डाला और घर की एक एक ईंट उठा ले गए…इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आखिर बाबा साहेब के अनुयायियों ने ही उनकी जन्मस्थली का घर क्यों तोड़ दिया था
बाबा साहेब का जन्मस्थान
दरअसल, बाबा साहेब का जन्म मध्य प्रदेश के महू छावनी के एक बैरक में हुआ था..यह बैरक उनके पिताजी रामजी मालोजी सकपाल को अंग्रेजों द्वारा अलॉट किया गया था. बाबा साहेब के पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में तैनात थे. इसी क्वार्टर में 14 अप्रैल 1891 को बाबा साहेब का जन्म हुआ लेकिन रिटाएरमेंट के बाद उनके पिता यह क्वार्टर छोड़कर कहीं और शिफ्ट हो गए. ऐसे में बाबा साहेब के बचपन से जुड़ी तमाम चीजें लोगों की नजर में आ ही नहीं सकी.
1947 में देश को आजादी मिल गई..1950 में देश का संविधान भी लागू हो गया…दलितों को अधिकार भी मिल गए लेकिन जो नहीं मिला, वह था बाबा साहेब का जन्मस्थान. कोई उसे ढूंढना ही नहीं चाहता था या यूं कहें कि तत्कालीन नेताओं को इसकी फिक्र तक नहीं थी. संविधान लागू होने के मात्र 6 साल बाद ही 1956 में बाबा साहेब की मृत्यु हो गई. बाबा साहेब की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने उन जगहों को संजोना शुरु किया, जहां बाबा साहेब के कदम पड़े थे, जहां बाबा साहेब ने दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी.
इस तरह से देश के तमाम हिस्सों में ऐसे जगहों को चिह्नित किया गया और वहां बाबा साहेब के स्मारक बनाए गए या उनकी मूर्ति स्थापित की गई. इसी बीच बाबा साहेब के जन्मस्थान को लेकर पेंच फंसा और उसकी खोजबीन शुरु की गई. 1970 में डॉ भीमराव अंबेडकर मेमोरियल सोसायटी के अध्यक्ष भंते धर्मशील ने वृहद ढंग से इसकी खोजबीन शुरु कर दी. महाराष्ट्र से बाबा साहेब का गहरा लगाव रहा. उन्होंने अपनी अंतिम सांस भी महाराष्ट्र में ही ली थी. ऐसे में सभी को यही लग रहा था कि बाबा साहेब का महाराष्ट्र से कनेक्शन है. भंते धर्मशील ने भी महाराष्ट्र के कोने कोने को छान डाला लेकिन बाबा साहेब के जन्म से जुड़ा कोई भी सुराग उनके हाथ नहीं लगा. काफी खोजबीन करने के बाद उन्हें पता चला कि बाबा साहेब के पिता रामजी सकपाल सेना में सूबेदार थे और मध्य प्रदेश के महू में उनकी पोस्टिंग थी.
बाबा साहेब के घर की ईंट
इसके बाद भंते धर्मशील सीधे महू पहुंच गए. काफी मशक्कत के बाद उन्होंने वह बैरक ढूंढ़ निकाला, जहां पर बाबा साहेब के पिता रामजी सकपाल रहते थे. भंते धर्मशील को उसी बैरक में बाबा साहेब के जन्म के प्रमाण मिले. बाद में इसकी आधिकारिक जानकारी भी मिली कि बाबा साहेब का जन्म इसी बैरक में हुआ था. वह बैरक 22,500 वर्ग फुट का था. कुछ लोगों की मदद से उन्होंने 1890 के बॉम्बे महार रेजिमेंट के दस्तावेज निकलवाये और केंद्र सरकार ने भी वेरीफाई किया कि सूबेदार रामजी रामजी मालोजी सकपाल को कौन सा क्वार्टर आवंटित किया गया था और किस क्वार्टर में बाबासाहब का जन्म हुआ..
फिर क्या था बाबा साहेब का जन्मस्थान खोजे जाने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई. 14 अप्रैल 1991 को डॉ अंबेडकर की 100वीं जयंती पर मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा ने महू स्थित बाबासाहेब अंबेडकर के जन्मस्थान पर एक स्मारक की आधारशिला रखा थी. उस दौरान यहां लाखों की संख्या में बाबासाहेब के अनुयायी जुटे थे. इस मौके पर वहां उपस्थिति लोग काफी भावुक थे. इसी दौरान वहां उपस्थित बाबा साहेब का एक अनुयायी इतना भावुक हो उठा कि उसने सोचा कि क्यों न मैं बाबा साहेब के घर की ईंट अपने साथ ले जाऊं और हर दिन इस ईंट की पूजा करूं..ऐसे में उनसे ईंट उठा ली और रख लिया. उसे बाबा साहेब के घर की ईंट उठाकर रखते हुए कुछ लोगों ने देख लिया…फिर क्या था..वहां उपस्थित भीड़ बाबा साहेब के घर पर टूट पड़े और एक एक ईंट को उठाकर अपने साथ ले जाने लगे. ढ़ाई से तीन घंटे के अंदर बाबा साहेब का जन्मस्थान पूरी तरह से तहस नहस हो चुका था…हालांकि, मौजूदा समय में वहां एक भव्य स्मारक बन चुका है और वहां बाबा साहेब की अस्थियां भी रखी गई हैं.