बाबा साहेब की छवि लोगों ने काफी सीरियस दिखाया है लेकिन उनके जीवन को अगर ध्यान से देखा जाए तो वह काफी सौम्य और नरम दिल वाले इंसान थे…अपने समाज के लोगों पर हो रही क्रूरता उन्हें कचोटती थी…इसके लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया कि पूरी दुनिया आज भी उनकी ऋणी है. दूसरी ओर अगर उनके पर्सनल जीवन को देखा जाए तो बाबा साहेब का जीवन दुख से भरा रहा. पहले मां की मृत्यु, उसके बाद भाई बहनों की मृत्यु और फिर पिता और पत्नी की मृत्यु ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था…एक कंधे पर बहुजनों को उनका हक दिलाने का भार तो दूसरे कंधे पर दुखों का पहाड़…लेकिन बाबा साहेब अनावरत आगे बढ़ते जा रहे थे..समय के साथ बाबा साहेब कई बीमारियों की गिरफ्त में आ गए..उनके देख रेख के लिए कोई था नहीं ऐसे में अब लोग उन्हें दूसरी शादी करने की सलाह देने लगे थे. आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे बाबा साहेब ने दिसंबर की कंपकपाती ठंड में शारदा कबीर को प्रपोज किया था?
डॉ. अंबेडकर की प्रेमकहानी
बाबा साहेब और शारदा कबीर की पहली मुलाकात 1947 के शुरुआती दिनों में हुई थी. 1948 में दोनों ने शादी कर ली लेकिन इसके पीछे की कहानी काफी रोचक है..डॉ सविता ने अपनी किताब “माय लाइफ विथ डॉ. अम्बेडकर” में बताया है कि जब बाबा साहेब पहली बार उनसे मिले थे तो वह बहुत सारी बीमारियों से जूझ रहे थे. उन दोनों की मुलाकात डॉ. राव नाम के व्यक्ति के जरिये हुए थी. दरअसल, डॉ. राव की दोनों बेटियां शारदा कबीर की बहुत अच्छी दोस्त थी और उन्होंने ही इन दोनों का परिचय कराया था.
सविता अपनी किताब में कहती हैं कि बाबा साहेब ने उन्हें डॉक्टर बनने पर बधाई भी दी क्योंकि उस समय किसी महिला का डॉक्टर बनना असाधारण बात थी. उसके बाद उनकी कुछ मुलाकातें होती रहीं. क्योंकि बाबा साहेब का उस समय इलाज चल रहा था औ डॉ सविता ही उनकी देखभाल कर रही थीं. वह अपने किताब में बाबा साहेब द्वारा दिए गए शादी के प्रोपोजल के बारे में बताती हैं. वह कहती हैं कि दिसम्बर के ठंड का समय था. भीमराव ने मुझे अपने साथ चलने को कहा और मुझे प्रोपोज कर दिया, उस समय मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैं चुप रही.
मराठी ब्राह्मण से तालुक्क रखती थी सविता
दरअसल, बाबा साहेब ने सविता को प्रोपोज करते हुए कहा था…“देखो डॉक्टर, मेरे साथी और मेरे अपने लोग मुझ पर यह ज़ोर डाल रहे है कि मैं शादी कर लूं. पर मेरे लिए एक काबिल साथी ढूंढना बहुत मुश्किल हो रहा है. लेकिन मेरे लाखों लोगों के लिए मुझे जिन्दा रहना होगा और इसके लिए यही सही होगा कि मैं अपने लोगों की विनती को गंभीरता से लूं, मैं आपके साथ ही सही व्यक्ति की खोज शुरू करता हूं.” बाबा साहेब के इन बातों को डॉ सविता समझ नहीं पाई थीं. उसके बाद बाबा साहेब दिल्ली के लिए रवाना हो गए और डॉ सविता भी अपने कामो में व्यस्त हो गईं. सविता अपनी किताब में लिखती हैं कि मैं तो भूल भी गई थी कि बाबा साहेब ने मुझसे कुछ पूछा भी था.
कुछ समय बाद बाबासाहेब का एक पत्र आया जिसमें लिखा था…मैं समझता हूं कि हम दोनों में उम्र का काफी फासला है.अगर आप मेरे प्रपोजल को मना भी कर देंगी तो मुझे बुरा नहीं लगेगा, मैं आपके जवाब का इंतजार कर रहा हूं. सविता ने अपनी किताब में बताया है कि बाबा साहेब के पत्र के कुछ दिनों बाद मैंने एक पत्र लिखकर उन्हें शादी के लिए हां बोल दिया. कुछ दिनों बाद 1948 में दोनों की शादी हो गई.
आपको बता दें कि सविता पुणे के एक मराठी ब्राह्मण परिवार से तालुक्क रखती थीं, जबकि बाबा साहेब महार जाति से थे. दिल्ली में स्थिति आवास पर इनदोनों की शादी हुई लेकिन इस शादी को दोनों पक्षों ने यानी ब्राह्मण और दलित समाज ने जमकर विरोध किया. खुद अंबेडकर के बेटे यशवंतराव भी इस शादी के खिलाफ थे…लेकिन धीरे धीरे दूरियां कम हुई और डॉ सविता के देखरेख में बाबा साहेब ठीक होने लगे थे.