बाबा साहेब के विचारों ने हमेशा से मनुवादियों पर आघात किया है. आज भी मनुवादी उनके विषय में सुनना तक पसंद नहीं करते. बाबा साहेब ने अपने जीवन में कई किताबें लिखी. उनमें से कुछ किताबों को आज भी दुनिया के मशहूर विश्वविद्यालयों में पढ़ाया तक जाता है लेकिन उनकी कुछ किताबों ने मनुवादियों के भीतर इतनी चिड़न पैदा कर दी थी कि वे बाबा साहेब के खिलाफ प्रदर्शन करने सड़को पर उतर आए थे..उनके किताबों को बॉयकॉट करने की मांग की…उन्हें धमकियां तक मिली थी. बाबा साहेब की ऐसी ही एक किताब थी रिडल्स इन हिंदुइज्म. इस किताब से बाबा साहेब की जान को खतरा हो गया था. खुद सविता माई ने बाबा साहेब के दोस्त को लेटर लिखते हुए ये बातें बताई थीं. आज के लेख में हम आपको सविता माई के उस लेटर के बारे में बताऊंगी, जिनमें उन्होंने बाबा साहेब की जान को खतरा है..जैसी चीजें बताई थी.
इस किताब से था डॉ अंबेडकर को खतरा
दरअसल, सविता माई ने अपनी आत्मकथा माय लाइफ विद डॉ अंबेडकर में कई चीजों का जिक्र किया था. मराठी में उन्होंने इसे लिखा था, जिसका अंग्रेजी अनुवाद नदीम खान ने किया. किताब के अनुवाद के बाद वैसी तमाम चीजें लोगों को पता चली, जिससे अभी तक दुनिया अंजान थी. इसी पुस्तक में सविता माई के उस लेटर का भी जिक्र है, जो उन्होंने बाबा साहेब के एक मित्र को लिखा था.
माय लाइफ विद डॉ अंबेडकर में सविता अंबेडकर लिखती हैं कि उन्होंने डॉ अंबेडकर के एक घनिष्ठ मित्र को पत्र में लिखा था कि उनकी किताब रिडल्स इन हिंदुइज्म उनकी निजी सुरक्षा को खतरे में डालने वाली है, इसलिए बहुत जरुरी है कि एक ईमानदार, बुद्धिमान और समर्पित आदमी हर वक्त उनके साथ रहे.
लेकिन सवाल यह है कि बाबा साहेब द्वारा लिखे गए इस पुस्तक में ऐसा क्या था, जिससे उनकी जान पर बन आई थी. क्यों सविता माई को डर सताने लगा था? दरअसल, बाबा साहेब की यह पुस्तक हिंदू समाज में जाति व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है. इस पुस्तक के कुछ अंशों में हिंदू धर्म, उनकी मान्यताओं और हिंदू परंपराओं पर बात की गई है. साथ ही एकेश्वरवाद और सर्वेश्वरवाद पर भी चर्चा की गई है.
3 दशक तक पब्लिश नहीं हो पाई थी ये पुस्तक
बाबा साहेब हिंदू धर्म में धार्मिक अव्यवस्थाओं का जिक्र अपनी इस पुस्तक में करते है. उन्होंने इस पुस्तक में वेदों की उत्पति एवं समय की गणना का इकाई वर्ष, युग और महायुग पर भी सवाल उठाया है. बाबा साहेब ने रिडल्स इन हिंदुइज्म में समाज में व्याप्त जातिवाद, मनुवादी मानसिकता, असमानता और वर्ण व्यवस्था पर भी सवाल उठाया है. हालांकि, बाबा साहेब के इस पुस्तक की हर पंक्तियों में उनका तर्क नजर आता है. लेकिन आपको बता दें कि बाबा साहेब की मृत्यु के 3 दशक यानी करीब 30 साल बाद तक यह पुस्तक पब्लिश नहीं हो पाई थी.
ध्यान देने वाली बात है कि बाबा साहेब ने 1954 के शुरुआत में इस पुस्तक पर काम करना शुरु किया था और 1955 के अंत तक किताब लिखी जा चुकी थी. लेकिन उनके पास इतने फंड्स नहीं थे कि वह उसे पब्लिश कर सकें. 1956 में उनकी मृत्यु हो गई और उसके बाद यह किताब वैसे ही पड़ी रह गई. काफी लंबे समय बाद इस पुस्तक की भनक महाराष्ट्र सरकार को लगी, जिसके बाद 1987 महाराष्ट्र सरकार ने इसे पब्लिश कराया था.
इस किताब में हिंदू धर्म की कुरीतियों पर सवाल उठाए गए थे, उनका खंडन किया गया था…तार्किक प्रश्न पूछे गए थे..इसलिए हमेशा सविता माई को यह डर लगा रहता था कि इस पुस्तक के कारण बाबा साहेब के जीवन पर कोई आंच न आए..यही कारण था कि उन्होंने बाबा साहेब के दोस्त को लिखे अपने पत्र में इस बात का जिक्र किया था.