रमाबाई की मृत्यु ने बाबा साहेब को झकझोर कर रख दिया था..वह कुछ समय के लिए समाज से ही अलग थलग हो गए थे…उनकी मृत्यु के बाद बाबा साहेब थोड़े शिथिल पड़े और तमाम बीमारियों ने उन्हें घेर लिया. ऐसे में बाबा साहेब के मित्र उन्हें दूसरी शादी करने के लिए प्रेशर देने लगे..दूसरी ओर बाबा साहेब मुंबई के अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे, उस अस्पताल में उनका ईलाज जो डॉक्टर कर रही थीं..वही थीं डॉ सविता माई. ये मराठा ब्राह्मण परिवार से आती थी..अस्पताल में हुई दोस्ती के बाद दोनों ने विवाह का निर्णय लिया था लेकिन उनके इस निर्णय को लेकर काफी बवाल मचा. दोनों ओर के परिवारों ने नाराजगी जताई. लेकिन बाबा साहेब ने अपने निर्णय पर अड़े रहें. अपनी पुस्तक द बुद्धा एंड हिज धम्मा में उन्होंने सविता माई की जमकर तारीफ की थी और कहा था कि उन्होंने मेरी उम्र कम से कम 10 साल और बढ़ा दी..लेकिन बाबा साहेब की मृत्यु के बाद सविता माई का क्या हुआ…उनका जीवन कैसे बीता…इस लेख में हम आपको बताएंगे कि बाबा साहेब की मृत्यु के बाद सविता माई के साथ क्या हुआ और उनका जीवन कैसे बीता……
तब महिलाएं ना के बराबर डॉक्टरी पढ़ती थीं
बाबा साहेब से जब सविता अंबेडकर की शादी हुई तो इनके परिवार के साथ साथ अंबेडकरवादी लोग भी खुश नहीं थे. क्योंकि एक ब्राह्मण लड़की से शादी उन्हें मंजूर नहीं थी. वहीं, तमाम लोग बाबा साहेब के साथ भी खड़े थे और उनका मानना था कि बाबा साहेब जाति की बेड़ियों को तोड़कर समाज को संदेश दे रहे हैं. हालांकि, शादी के बाद बहुत सारे लोगों को शिकायत रहने लगी थी कि अब वह लोगों से कम मिलते हैं, उनसे मिलना मुश्किल हो गया है. सविता माई पर यह आरोप लगने लगे कि वह खुद तय करती हैं कि बाबा साहेब किससे मिले और किससे नहीं.
लेकिन सच्चाई यह थी कि बाबा साहेब उस दौरान काफी बीमार थे और एक डॉक्टर होने के नाते सविता अंबेडकर उनके सेहत को लेकर तमाम फैसले लेती थी. शायद यही कारण था कि बाबा साहेब ने भी कहा था कि सविता ने उनकी उम्र 10 साल ज्यादा कर दी थी. लेकिन 6 दिसंबर 1956 को बाबा साहेब की मृत्यु के बाद सभी सविता अंबेडकर को ही उनकी मृत्यु का दोषी ठहराने लगे. हालात काफी बिगड़ गए…बाबा साहेब की मौत की जांच की मांग की जाने लगी. केंद्र सरकार ने इसकी जांच कराई. जांच के बाद उन्हें क्लीन चिट दे दी गई. हालांकि बाद में कांग्रेस ने उन्हें कई बार राज्यसभा सदस्यता का न्योता दिया लेकिन उन्होंने विनम्रता से अस्वीकार कर दिया.
सविता को माई या मेम साहब कहा जाता था
बाबा साहेब के निधन के बाद सविता माई दिल्ली में ही एक फॉर्म हाउस में रहने लगीं. अंबेडकर के परिजनों से उनके रिश्ते हमेशा से ही तनाव भरे थे. ऊपर से उसी पक्ष की ओर से उन पर अंबेडकर के निधन को लेकर लापरवाही का आरोप लगाया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने अंबेडकर अनुयायियों के भारी दबाव के बीच जांच बिठाई लेकिन जांच में निष्कर्ष निकला कि ये एक नेचुरल डेथ थी. दिल्ली में बाबा साहेब को लेकर होने वाली कई गतिविधियों में वह सक्रिय रहती थीं. हालांकि, उन्होंने खुद को सियासी गतिविधियों से काट रखा था लेकिन बाद में मुंबई जाकर उन्होंने सियासी तौर पर सक्रिय होने की कोशिश की. 4 अप्रैल,1990 के दिन जब बाबा साहेब को भारत रत्न दिया गया तो उन्होंने डॉ अंबेडकर की पत्नी की हैसियत से इसे ग्रहण किया था.
उन्होंने अपनी आत्मकथा में बाबा साहेब से जुड़ी तमाम बातों का जिक्र किया है. वह लिखती हैं कि “मुझे साहेब ने स्वीकार किया. मैं अंबेडकर मयी हो गई. मैंने उनका हमेशा साथ दिया. बीते 36 सालों से विधवा का जीवन जी रही हूँ, वह भी अंबेडकर के नाम के साथ. मैं अंबेडकर के नाम के साथ जी रही हूं और मरूंगी भी तो इसी नाम के साथ.” आपको बता दें कि 19 अप्रैल, 2003 को को मुंबई के जे.जे. हॉस्पिटल में खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें भर्ती कराया गया. 29 मई, 2003 को उनका निधन हो गया.