UCC को लेकर पूरे देश में चर्चा हो रही है…तमाम आदिवासी संगठन…सिख समुदाय के लोग..इस्लाम को मानने वाले लोग इसके विरोध में हैं. वहीं, कई राज्य सरकारें भी इसके विरोध में है. कई राज्यों में तो सरकारों ने यूसीसी के विरोध में प्रस्ताव तक पास कर दिया है. लेकिन आपक बता दें कि बाबा साहेब अंबेडकर यूसीसी के हिमायती थे और इसके प्रस्तावक भी थे…बाबा साहेब ने इस पर चर्चा करते हुए अपनी बातें भी रखी थी…आखिर बाबा साहेब ने यूसीसी को लेकर क्या कहा था…यूसीसी पर उनके क्या विचार थे…उस समय यूसीसी लागू करने में अड़चन कैसे आई…
यूसीसी पर बाबा साहेब की सोच
दरअसल, समान नागरिक संहिता की उत्पत्ति औपनिवेशिक भारत में हुई, जब ब्रिटिश सरकार ने 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता की आवश्यकता पर जोर दिया गया. लेकिन अलग अलग समयों पर अलग अलग धर्म के लोगों के लिए अलग अलग कई कानून बनें…जिनके सहारे आज तक चीजें चली आ रही है…
हिंदू समाज…हिंदू मैरिज एक्ट 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत चल रहा है..वहीं, मुस्लिम समुदाय मुस्लिम पर्सनल लॉ को मानता है, जो 1937 में लाया गया था. यह मुसलमानों के बीच विवाह, तलाक़, विरासत और रखरखाव के मामलों में इस्लामी क़ानून को लागू करने को मान्यता देता है. आजादी से पहले ये कानून 1935 में पाकिस्तान के सूबा सरहद में पहली बार लाया गया था. इसके अलावा सिखों की शादी संबंधित कानून 1909 के आनंद विवाह अधिनियम के अंतर्गत आते हैं, जबकि ईसाइयों के शादी संबंधित कानून 1872 में लाए गए भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के अंतर्गत आते हैं.
वहीं, बाबा साहेब अंबेडकर ने 1948 में संविधान सभा कि बैठक में यूसीसी को भविष्य के लिए अहम बताया था और इसे स्वैच्छिक रखने की बात कही थी. इस पर लंबी बहस हुई थी और केएम मुंशी, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर ने यूसीसी का बचाव किया था. सबसे अपने तर्क थे. बहस के दौरान बाबा साहेब ने कहा, “समान नागरिक संहिता के बारे में कुछ भी नया नहीं है. विवाह, विरासत के क्षेत्रों को छोड़कर देश में पहले से ही एक समान नागरिक संहिता मौजूद है, जो संविधान के मसौदे में समान नागरिक संहिता के मुख्य लक्ष्य हैं. यूसीसी भी वैकल्पिक होना चाहिए.”
बाबा साहेब ने यह स्पष्ट तौर पर कहा था कि यूसीसी की अनुपस्थिति सामाजिक सुधारों के में सरकार के प्रयासों में बाधा उत्पन्न करेगी. उन्होंने ये भी कहा कि “मुझे व्यक्तिगत रूप से समझ में नहीं आता कि धर्म को इतना विशाल, विस्तृत क्षेत्राधिकार क्यों दिया जाना चाहिए ताकि पूरे जीवन को कवर किया जा सके और विधायिका को उस क्षेत्र में अतिक्रमण करने से रोका जा सके. आख़िर हमें यह आज़ादी किसलिए मिल रही है? हमें यह स्वतंत्रता अपनी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मिल रही है, जो असमानताओं, भेदभावों और अन्य चीजों से इतनी भरी हुई है, जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ टकराव करती है.”
हालांकि, उस समय भारी विरोध के बावजूद इसे संविधान में जोड़ा गया था. संविधान के भाग 4 में आर्टिकल 36 से 51 तक नीति निदेशक तत्व दिए गए हैं. इन्हीं नीति निदेशक तत्वों में आर्टिकल 44 यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात करता है.
यूसीसी के प्रति बाबा साहेब का दृष्टिकोण उनके हिंदू कोड बिल में भी दिखा था. बाबा साहेब के हिंदू कोड बिल का उद्देश्य हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड के स्थान पर एक नागरिक संहिता प्रदान करना था, जिसे ब्रिटिश अधिकारियों ने एक सीमित सीमा तक ही संशोधित किया था. उस समय बाबा साहेब का जमकर विरोध हुआ..कई मनुवादी नेता और उच्च वर्ग के अधिकारियों ने बाबा साहेब का विरोध किया…जिसके परिणामस्वरुप संसद में विवाह, उत्तराधिकार आदि में समानता की मांग करने वाले हिंदू कोड बिल को रोक दिया गया…उसी के बाद बाबा साहेब ने 1951 में अपना इस्तीफा दे दिया था.
अब एक बार फिर से यूसीसी को लेकर देश में माहौल गर्म है. अलग अलग समुदाय के लोग अपने अपने नजरिए से इसका विरोध कर रहे हैं. कुछ लोगों का मानना है कि इससे उनके धर्म में घुसपैठ होगी…उनकी आस्था पर चोट होगी लेकिन बाबा साहेब का इसे लेकर स्पष्ट रुप से यह मानना रहा कि यूसीसी के बिना सामाजिक सुधार संभव नहीं है.
बता दें कि यूसीसी लागू होने के बाद भारत में रहने वाले हर नागरिक जो किसी भी धर्म, जाति या लिंग का हो…उन सब के लिए कानून एक समान हो जाएगा. यूसीसी के लागू होने के साथ ही सभी धर्मों के लोगों के लिए विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में अधिकार एक समान हो जाएंगे.