बाबा साहेब अंबेडकर की पहचान को हमेशा से काफी अलग तरह से दिखाने का प्रयास किया गया…उनके चरित्र को गुस्सैल दिखाने का प्रयास किया गया, जो वास्तव में था ही नहीं…बाबा साहेब एक सौम्य और खुशनुमा मिजाज के व्यक्ति थे. पढ़ाई लिखाई और सामाजिक क्षेत्र में पारंगत होने के साथ साथ फिल्मी दुनिया और रंगमंच के लोगों से भी उनके संबंध मधुर रहे लेकिन एक दफा ऐसा हुआ था कि उस दौर के महानायक दिलीप कुमार के साथ उनकी पहली ही मुलाकात कड़वाहट में बदल गई थी…आखिर क्या था पूरा मामला…बाबा साहेब ने ऐसा क्या कहा था कि दिलीप कुमार मीटिंग के बीच में ही छोड़कर निकल गए थे…
बॉलीवुड में इंडस्ट्री में दिलीप कुमार का बड़ा योगदान
फिल्म इंडस्ट्री में दिलीप कुमार के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. उन्होंने बॉलीवुड को एक नई पहचान दिलाने का काम किया था. आप उनके रुतबे का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि वो पंडित जवाहरलाल नेहरू के बहुत अच्छे दोस्त थे. दिलीप कुमार और पंडित नेहरू इतने करीब थे कि जब भी नेहरू को कला के क्षेत्र से जुड़े किसी मामले या किसी सामाजिक मुद्दे पर सलाह लेनी होती थी तो वो दिलीप कुमार से बात करते थे।
हालांकि, दिलीप कुमार का ये अंदाज़ डॉ अंबेडकर के आगे नहीं चल पाया। दरअसल, एक बार दिलीप कुमार की मुलाकात बाबा साहेब अंबेडकर से हुई और इनकी पहली मुलाकात ही कड़वाहट में बदल गई थी। अपनी दमदार शख्सियत से सबको दीवाना बनाने वाले दिलीप कुमार, बाबा साहेब को अपना मुरीद नहीं बना पाए थे। अपने विचारों से सबको प्रभावित करने वाले दिलीप कुमार, बाबा साहेब को अपनी बातों से प्रभावित करने में नाकाम रहें।
एक बार दिलीप कुमार किसी काम से औरंगाबाद के रेलवे होटल में रुके थे, जिसे बाद में होटल अशोका के नाम से जाना गया। वहीं, डॉ. भीमराव अंबेडकर भी अपने बहनोई कालू कबीर के साथ इसी होटल में ठहरे हुए थे। दरअसल, बाबा साहेब औरंगाबाद में अपने मिलिंद कॉलेज के लिए फंड इकट्ठा करने के लिए इस होटल में ठहरे थे। जब दिलीप कुमार को पता चला कि संविधान निर्माता भी उसी होटल में ठहरे हैं, तो उन्होंने डॉ अंबेडकर के बहनोई से बाबा साहेब से मिलने की इच्छा जताई। फिर क्या था..उन दोनों की मीटिंग अरेंज हुई और दिलीप कुमार ने बाबासाहेब के कॉलेज को फ़ंड देने की इच्छा जाहिर की। जिसके बाद डॉक्टर अम्बेडकर ने वार्तालाप की शुरुआत ये कहकर की कि फिल्म इंडस्ट्री कोई बहुत अच्छी जगह नहीं है और यहाँ न अच्छे इंसान हैं और न ही उनमें कोई मोरल वैल्यूज़ बाकी हैं।
अम्बेडकर और दिलीप के बीच मतभेद
इसके बाद डॉक्टर अम्बेडकर कुछ कहते इससे पहले ही दिलीप कुमार ने अपने अनोखे अंदाज़ में उन्हें टोकते हुए बताया कि आपके मन में फिल्म इंडस्ट्री की ग़लत इमेज बनी हुई है लेकिन डॉक्टर अम्बेडकर, दिलीप कुमार की किसी बात को समझने को राजी नहीं थे और उन्होंने दिलीप कुमार को अनगिनत ऐसे मौके गिनाए जिनसे ये साफ़ साबित होता था कि फिल्म इंडस्ट्री में कोई बहुत अच्छे लोग नहीं हैं।
बाबा साहेब की बातों से दिलीप कुमार इतने ख़फ़ा हुए कि बिना कुछ बोले, अगले ही पल उठे और अपने कमरे की तरफ चले गये। बाबा साहेब और दिलीप कुमार के बीच तनाव देख कर पूरे होटल में सन्नाटा पसर गया था.. सब यही सोच रहे थे कि ये क्या हुआ..
इसके बाद कालू कबीर ने डॉ. अंबेडकर को समझाया कि उन्हें दिलीप कुमार से ऐसा नहीं कहना चाहिए था क्योंकि वो उनके कॉलेज के लिए अच्छी रकम दान करने की पेशकश कर रहे थे। लेकिन डॉ. अंबेडकर ने साफ कह दिया कि वे सिर्फ पैसों के लिए अपने सिद्धांतों और सोच को नहीं बदल सकते और इस तरह से बाबा साहब और दिलीप कुमार की पहली मुलाक़ात कड़वाहट भरी रही थी…