जब बाबा साहेब के बेटों को कफन तक नसीब नहीं हुआ था

Ambedkar-wife-Rama-BAI

बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर….यह एक ऐसा नाम है जिसे सुनते ही मनुवादियों को दस्त लग जाता है…उनके चेहरे पर डर का भाव दिखने लगता है…वे हताश और निराश हो जाते हैं…दलितों को मनुवादियों की जकड़ से निकालने वाले बाबा साहेब से कुंठितों को हमेशा समस्या रही…उनके विरुद्ध तमाम षड्यंत्र रचे गए लेकिन बाबा साहेब ने हर बार उन्हें पटखनी दी. लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब बाबा साहेब पाई-पाई के मोहताज हो गए थे…

दलितों को मनुवादि

दरअसल, बाबा साहेब की पहली शादी 15 साल की उम्र में 1906 में  हुई थी. रमाबाई की उम्र भी उस समय मात्र 9 साल की थी. शादी के बाद भी बाबा साहेब ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. शादी के 6 सालों बाद 1912 में बाबा साहेब के पहले पुत्र यशवंत का जन्म हुआ. उसे बाद बाबा साहेब और रमा बाई की 4 और संतानें  हुईं थी, जिनमें से 3 लड़कियां और 1 लड़का था. लेकिन यशवंत के बाद पैदा हुआ बाबा साहेब के चारों बच्चे जीवित नहीं रह पाए. बाबा साहेब लगातार हो रहे अपने बच्चों की मौत से पूरी तरह से टूट चुके थे. अपने एक पत्र में उन्होंने इस बात का जिक्र भी किया है.

यशवंत के पैदा होने के कुछ वर्षों बाद बाबा साहेब आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चले गए. हर कदम पर रमाबाई उनके साथ खड़ी रहीं. 1916 में  लंदन  से लौटने के बाद वह दलितों के अधिकार की लड़ाई में लग गए. बाबा साहेब के परिवार को हमेशा इस बात की शिकायत रही कि वह सार्वजनिक जीवन में इतने व्यस्थ थे कि परिवार को समय नहीं दे पाते थे. दूसरी ओर गरीबी उनका पीछा ही नहीं छोड़ रही थी.

कहा जाता है कि जब बाबा साहेब के सबसे छोटे बेटो को निमोनिया हुआ था, उस समय वह दलितों के हक की वकालत करने गोलमेज सम्मेलन में गए हुए थे. बाबा साहेब के पास अपने बच्चों का इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे…ऐसे में उनके छोटे बच्चे की मृत्यु निमोनिया से ही हो गई. हालात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि छोटे बेटे की मौत के बाद बाबा साहेब के पास अपने बच्चे के कफन तक के लिए पैसे नहीं थे. जिसके बाद रमाबाई ने अपनी साड़ी के एक टुकड़े से अपने  बेटे के लिए कफन बनाया था.

दलितों के हितों की लड़ाई में मग्न रहने और परिवार पर ध्यान न देने के कारण बाबा साहेब और उनके बेटे यशवंत राव के बीच संबंध काफी अच्छे नहीं थे. हालांकि, तमाम मुश्किलों और परेशानियों को झेलते हुए बाबा साहेब ने दलितों के लिए जो किया, वह अकल्पनीय है. आपको बता दें कि छोटे बेटे की मौत के कुछ सालों बाद ही 1935 में रमाबाई का भी निधन हो गया. वह लंबे समय से बीमार चल रही थीं. बाबा साहेब की तरक्की और उच्च शिक्षा में उनका योगदान  और समर्पण सबसे ज्यादा था.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *