जब डॉ अंबेडकर ने कोर्ट में बाल गंगाधर तिलक को भी हराया

Tilak
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बाल गंगाधर तिलक कोई  महान नहीं था…तिलक को इतिहास में जितना बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जाता है, वह उसके लायक नहीं था. महिला शिक्षा के विरोध से लेकर, अंग्रेजों की दलाली तक, यहां तक कि किसानों और दलितों के विरोध में आंदोलन छेड़ने तक, तिलक ने हर वह घृणित काम किया है, जिससे उसकी कथित महानता पर सवाल उठते हैं. बाबा साहेब और तिलक में कई मुद्दों पर मतभेद थे. एक बार तो ऐसा भी हुआ था कि बाबा साहेब ने तिलक को कोर्ट में भी हराया था.

गैर-ब्राह्मणों के बारे में तिलक के विचार

दरअसल, 1926 में गैर-ब्राह्मण  आंदोलन के नेता केशवराव जेधे द्वारा देशाचे दुश्मन यानी देश का दुश्मन नामक किताब प्रकाशित की गई थी, जिसके लेखक सत्यशोधक दिनकरराव दवलकर थे, जो गैर-ब्राह्मण आंदोलन से जुड़े थे. इस किताब में  बाल गंगाधर तिलक और विष्णुशास्त्री चिपलूणकर के विचारों की कड़ी आलोचना  की गई थी…किताब के माध्यम से इन नेताओं पर ब्राह्मणवादी, प्रतिक्रियावादी और राष्ट्रविरोधी होने का आरोप लगाया गया था. साथ ही इन्हें महाराष्ट्र में दलित जातियों और मुस्लिमों के पिछड़ेपन का कारण भी बताया गया था.

इस किताब के छपते ही हंगामा मच गया. तिलक और चिपलूणकर के समर्थकों ने भारी हंगामा खड़ा कर दिया. साथ ही नारायण गणेश नामक व्यक्ति ने इस किताब के प्रकाशक केशवराव जेधे और सत्यशोधक दिनकरराव दवलकर के खिलाफ बाल गंगाधर तिलक और विष्णुशास्त्री चिपलूणकर के मानहानि का मामला दर्ज करवा दिया. यह व्यक्ति खुद को तिलक का दूर का रिश्तेदार बता रहा था. इसका कहना था कि देशाचे दुश्मन  किताब में तिलक और विष्णुशास्त्री चिपळूणकर की प्रतिष्ठा और चरित्र को हानि पहुंचाई है. नारायण गणेश ने केशवराव जेधे और सत्यशोधक दिनकरराव से 50 हजार रुपये का हर्जाना मांगा था और इस किताब को  बैन करने की मांग की थी.

लेकिन मजे की बात यह है कि जब यह किताब प्रकाशित हुई, उस समय तक तिलक और चिपलूणकर में  से कोई भी जीवित बचा नहीं था. आपको बता दें कि इस मामले में  किताब को प्रकाशित करने वाले केशवराव जेधे और दिनकर राव का पक्ष  बाबा साहेब अंबेडकर रख रहे थे. बाबा साहेब खुद तमाम मुद्दों पर तिलक की आलोचना कर चुके थे. अब बाबा साहेब के पास कोर्ट में भी तिलक को  पटखनी देने का शानदार मौका था.

किताब का प्रकाशन

बाबा साहेब की इस मामले में बचाव रणनीति दो तथ्यों पर आधारित थी, पहली तो ये कि जब किताब का प्रकाशन हुआ था तो तिलक और चिपळूणकर जीवित नहीं थे तो उनकी मानहानि कैसे हो सकती है? दूसरा मानहानि का मामला दर्ज करने वाले नारायण गणेश, तिलक और चिपळूणकर के करीबी रिश्तेदार या वारिस नहीं थे तो उनके पास मानहानि करने का अधिकार ही नहीं था. ऐसे बाबा साहेब ने इस मुकदमे को जीता था और साथ ही बताया कि इस किताब का उदेश्य किसी को बदनाम करना नही बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों से राजनीति राय व्यक्त करना था.

इस तरह बाबा साहेब ने जीते जी तो बाल गंगाधर तिलक को हर मोर्चे पर मात दी ही लेकिन उनके मरने के बाद भी बाबा साहेब उन्हें झकझोरते रहे. उनकी क्लास लगाते रहे. आपको हमारी यह वीडियो कैसी लगी हमें कमेंट सेक्शन में जरुर बताएं

 

 

 

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