ब्राह्मणों ने बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर को संस्कृत पढ़ाने से क्यों मना किया?

Dr. Ambedkar on Sanskrit
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Dr. Ambedkar on Sanskrit – बाबा साहेब अंबेडकर महाज्ञानी थे ये सब जानते हैं…उन्हें कानून, अर्थशास्त्र समेत कई क्षेत्रों का वृहद ज्ञान था. उनके सामने किसी का भी टिकना मुश्किल था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाबा साहेब ब्राह्मणों और पंडितों की भाषा संस्कृत में भी पारंगत थे. हालांकि, संस्कृत सीखने के लिए उन्हें ब्राह्मणवादियों से लड़ना पड़ा था…भिड़ना पड़ा था लेकिन भारत में तब भी उन्हें संस्कृत नहीं सीखने दिया गया..इसके बाद उन्होंने विदेश में जाकर संस्कृत की शिक्षा ली थी. इस लेख में हम आपको  बताएंगे कि आखिर ब्राह्मणों ने बाबा साहेब को संस्कृत पढ़ाने से मना क्यों कर दिया था?

अंबेडकर की संस्कृत सीखने की लड़ाई – Dr. Ambedkar on Sanskrit

जिस देश में मौलिक अधिकारों को लेकर इतनी बहस होती है उस देश में ये कैसे संभव हो सकता है कि किसी को पढ़ना है किसी विशेष भाषा को पढ़ने से कोई एक समुदाय रोक दे. बेशक, ऐसे सवाल पूछने के अपने कारण हैं. बाबा साहेब ने  अपनी आत्मकथा में संस्कृत के बारे में और संस्कृत के अपने ज्ञान के बारे में विस्तृत लिखा है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि वो संस्कृत भाषा सीखने के इच्छुक थे और उन्हें इसका ज्ञान भी था.

उन्होंने अपनी आत्मकथा में मराठी में इसका जिक्र किया है..जिसका हिंदी अनुवाद हम आपके सामने रख रहे हैं…उन्होंने लिखा, ‘मेरे पिता चाहते थे कि मैं संस्कृत सीखूं. लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई क्योंकि हमारे संस्कृत शिक्षक ने जोर देकर कहा कि मैं अछूतों को संस्कृत नहीं पढ़ाऊंगा. इसलिए मुझे फारसी (पर्शियन) की ओर जाना पड़ा. मुझे संस्कृत पर बहुत गर्व है. अब मैं अपने प्रयासों से संस्कृत को पढ़ और समझ सकता हूं. लेकिन मेरे दिल में उस भाषा में अधिक पारंगत होने की लालसा है.”

डॉ. अंबेडकर ने जर्मनी में सीखी थी संस्कृत

ध्यान देने वाली बात है कि बाबा साहेब ने जर्मनी में संस्कृत सीखी थी क्यों उन्हें भारत में संस्कृत को एक विषय के रूप में लेने की अनुमति नहीं थी. ब्राह्मणवादी इसे पवित्र भाषा मानते थे और अछूत बालक को इसकी शिक्षा देने से इनकार कर देते थे. हालांकि, बाबा साहेब यह भाषा सीखने के इतने उत्सुक थे कि उन्होंने दो महीने जर्मनी में बिताई…संस्कृत सीखा और आर्थिक मदद के लिए ट्यूशन पढ़ाना शुरु कर दिया. संस्कृत में अधिक कुशल बनने के लिए बाबा साहेब ने मुंबई में पंडित होस्केरे नागप्पा शास्त्री और दिल्ली में गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे और पंडित सोहनलाल शास्त्री जैसे गणमान्य व्यक्तियों से शिक्षा ग्रहण की.

उन्होंने 1930 से 1942 तक मुंबई में पंडित होस्केरे नागप्पा शास्त्री से संस्कृत सीखी. पंडित नागप्पा शास्त्री 1937 में डॉ. अंबेडकर द्वारा स्थापित एक कॉलेज में संस्कृत के प्रोफेसर थे. वहीं, दिल्ली में अपने आवास पर बाबा साहेब, पंडित सोहनलाल शास्त्री के साथ संस्कृत पर चर्चा करते थे और संस्कृत में संवाद भी करते थे.

Dr. Ambedkar on Sanskrit – एक कहानी यह भी है कि पश्चिम बंगाल से सांसद पं. लक्ष्मीकांत मैत्र तब डॉ. आंबेडकर के संस्कृत भाषा के ज्ञान के बारे में आश्वस्त नहीं थे. तो उन्होंने बाबा साहेब से संस्कृत में अपने कुछ संदेह पूछे, जिसके बाद बाबा साहेब ने पंडित मैत्र के सभी प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में ही दिए. यह संवाद सुनकर वहां मौजूद हर शख्स हैरान रह गया था. यह खबर उस समय सुर्खियां भी बनीं थी. बाबा साहेब संस्कृत के महत्व को समझते थे क्योंकि इसमें अनेक प्रकार के ज्ञान समाहित थे. बाबा साहेब ने अपनी तीन पुस्तकें फिलॉसपी ऑफ हिंदुइज्म, रिडल्स इन हिंदुइज्म और रेवोल्यूशन एंड काउंटर रिवोल्यूशन इन एनशिएंट इंडिया में संस्कृत के कई संदर्भ दिए हैं. ऐसे में यह स्पष्ट है कि बाबा साहेब अंबेडकर को संस्कृत का ज्ञान था और बहुत बेहतर ज्ञान था.

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