ऐसा कहा जाता रहा है कि गांवों में भारत की आत्मा बसती है लेकिन हम कहते हैं कि दलितों के विरुद्ध सबसे बड़े कांड गांव में ही होते हैं. गांवों में दलितों की स्थिति आज भी मनुवादियों के ऊपर निर्भर है. दलित अभी तक गांवों में अपने पैरों पर खड़े भी नहीं हो पाए हैं. बाबा साहेब ने गांवों में दलितों की स्थिति को लेकर अपना स्पष्ट रूख व्यक्त किया था. उन्होंने गावों को दलितों का बूचड़खाना तक बताया था.
क्या है पूरी कहानी
बाबा साहेब को गांवों में दलितों की स्थिति का आभास काफी पहले से था. उनका मानना था कि जब तक गांवों में दलितों की दुर्दशा में सुधार नहीं आएगा तब तक वह सबल नहीं हो सकते. बाबा साहेब कहते थे कि हिंदू समुदाय, गांव को एक गणराज्य के रुप में देखता है. वह अपनी आंतरिक संरचना पर गर्व करते है, जिसमें न लोकतंत्र है, न समानता है, न स्वतंत्रता है और न ही भाईचारा.
गावं अछूतों के लिए हिन्दुओं का साम्राज्यवाद है जिसमे ऊंची जातियां, निचली जातियों का शोषण करती हैं. गावं में जातिगत भेदभाव और बंधुआ मजदूरी जैसी समाजिक कुरीतिया बहुत ज्यादा हैं. गावं में दलितों और निचली जातियों के पास कोई अधिकार नहीं होते हैं. यही सारे कारण थे कि बाबा साहेब ने गांवों को दलितों का बूचड़खाना बताया था.
संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भाषण देते हुए बाबा साहेब ने 4 नवंबर 1948 को कहा था कि गांव, स्थानीयता का एक गंदा हौदा है, अज्ञानता की मानद, संकीर्ण मानसिकता और जातिवाद का स्थान है. बाबा साहेब गांवों का ऐसा शहरीकरण चाहते थे, जिसमें दलितों का शोषण न हो.
आपको बता दें कि बाबा साहेब का पूरा बचपन गांव में बीता था. छुआछुत और भेदभाव जैसी चीजें उन्होंने बचपन से देखी थी. गांव समाज में अपनी बिरादरी की हालत से लेकर स्कूल में अगल थलग बैठकर पढ़ाई करने या फिर अलग घड़े से पानी पीने तक, बाबा साहेब ने दलितों के जीवन के हर वह आयाम देखें, जिसे सिर्फ हम दलित ही महसूस कर सकते हैं. गांवों में दलितों पर कितने अत्याचार होते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है. लोग अभी के समय में भी उनके यहां पानी तक नहीं पीते, रोटी बेटी के रिश्ते की बात तो काफी दूर की बात है.. गांवों में रहने वाले दलितों के प्रति अपने मन में दया का भाव रखते हुए बाबा साहेब ने गांव को दलितों का बूचड़खाना बताया था.