आजादी से पूर्व जब पूरे देश में कांग्रेस पैर पसार चुकी थी…अंग्रेज अधिकारियों की छत्रछाया में कांग्रेस के अधिकार बढ़ने लगे थे… एक तरह से पूरी कांग्रेस पार्टी ब्राह्मण नेताओं से भरी पड़ी थी…ऐसे समय में बाबा साहेब दलितों के अधिकारों को लेकर कांग्रेस और अंग्रेजी हुकूमत के सामने खड़े हो गए. उन्होंने जातिवाद, समाजवाद समेत कई मामलों पर कांग्रेस की विचारधारा का विरोध किया. स्थिति ऐसी बनी कि पंडित जवाहरलाल नेहरू और बाबा साहेब अंबेडकर आमने सामने आ गए.इसका असर यह हुआ कांग्रेस ने बाबा साहेब को संविधान सभा में शामिल होने से रोकने के लिए हर हथकंडा अपनाया था. आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि आखिर जवाहर लाल नेहरू की नजरों में बाबा साहेब खटकने क्यों लगे थे.
जानें क्या था पूरा मामला
1947 में आधिकारिक तौर पर भारत आजाद हो गया. जवाहरलाल नेहरू के साथ साथ पूरे देश को भी यही लगा कि भारत आजाद हो गया. लेकिन बाबा साहेब का मानना था कि देश को आजादी तो अंग्रेजों से मिली है, पर समाज में कुछ लोग अभी भी हैं जिन्हें हमारा समाज स्वीकार नहीं कर रहा, जब तक उनको समाजिक कुरीतियों से आजादी नहीं मिल जाती, तब तक देश को पूरी तरह से आजाद नहीं समझा जा सकता.
वहीं, बाबा साहेब और नेहरू में समाजवाद को लेकर वैचारिक मतभेद थे, जिसके कारण ये दोनों नेता एकदूसरे को पसंद नहीं करते थे. बाबा साहेब कहते थे कि कांग्रेस ने जन्म से ही दो तरह के सुधारों पर बात की है- राजनीतिक और सामाजिक सुधार. कांग्रेस के सामाजिक सुधार का अर्थ था कि परिवार के अंदर का सुधार, जैसे- बालिका विवाह पर रोक, विधवा विवाह को प्रोत्साहन आदि…लेकिन इसमें जातिवाद शामिल नहीं था. पहले कांग्रेस ये मानती थी कि जाति तोड़े बिना किसी भी समाज का सुधार मुमकिन नहीं है क्योंकि जातिवाद सामाजिक बुराइयों का मूल कारण है. लेकिन समय के साथ साथ कांग्रेस का सामाजिक सुधार खत्म हो गया और वह राजनीतिक सुधारक बन कर रह गई. इस कारण से भी कांग्रेस और नेहरू से बाबा साहेब हमेशा अलग रहे.
अब अगला और सबसे महत्वपूर्ण है बाबा साहेब संविधान सभा में शामिल न हों, इसके लिए कांग्रेस के द्वारा रचा गया षड्यंत्र. दरअसल, संविधान सभा में भेजे गए शुरुआती 296 सदस्यों में बाबा साहेब अंबेडकर का नाम शामिल नहीं था. कैबिनेट मिशन योजना के तहत बाबा साहेब शेड्यूल कास्ट फेडरेशन की ओर से मुंबई से उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए लेकिन कांग्रेसी षड्यंत्र के कारण उन्हें हार मिली. इसके बाद पश्चिम बंगाल के जोगेंद्र नाथ मंडल ने उन्हें बंगाल से चुनाव लड़ने को कहा. बाबा साहेब ने बंगाल से चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर ली. मुस्लिम लीग की मदद से अंबेडकर संविधान सभा पहुंच गए लेकिन उसी बीच कांग्रेस के समर्थन से देश का बंटवारा हुआ और जिस क्षेत्र से बाबा साहेब ने जीत हासिल की थी, वह पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में चला गया.
1951 में पेश किया था हिंदू कोड बिल
अब बाबा साहेब गुस्से से भर उठे. उन्होंने खुले तौर पर कांग्रेस को चेतावनी दी कि वह इस विभाजन को नहीं मानते और इस मुद्दे को वह राजनीतिक बनाएंगे. बाबा साहेब के इस बयान ने कांग्रेसी खेमे में खलबली मचा दी. अब कांग्रेस के पास उन्हें संविधान सभा में शामिल करने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा था. फिर क्या था बंबइ के तत्कालीन प्रधानमंत्री बीजी खेर ने कांग्रेस के इशारे पर बंबई से संविधान सभा के लिए चुने गए सदस्य एमआर जयकर को इस्तीफा देने के लिए प्रोत्साहित किया. उनके इस्तीफे के बाद बंबई सीट खाली हुआ और इसी सीट से बाबा साहेब जीत हासिल कर संविधान सभा में पहुंचे. अब आप समझ सकते हैं कि बाबा साहेब को रोकने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने कितने प्रयास किए थे लेकिन उन्हें झुकना पड़ा था…
बाबा साहेब और नेहरू के बीच मतभेद के पीछे यह भी एक बड़ा कारण था. हालांकि, संविधान निर्माण के बाद जब पहली सरकार बनी तो उसमें बाबा साहेब को स्वतंत्र भारत का पहला कानून मंत्री बनाया गया. बाबा साहेब अब सामाजिक सुधारों की ओर ध्यान देने में जुट गए थे. इसी कड़ी में उन्होंने 1951 में संसद में हिंदू कोड बिल पेश किया, जिसका कांग्रेस और मनुवादी नेताओं ने जमकर विरोध किया. खुद नेहरू भी इसके समर्थन में नहीं थे. नतीजा यह हुआ कि यह प्रस्ताव गिर गया और इसके साथ ही बाबा साहेब ने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया था.