“गांधी के सामने झुकना नहीं”, पेरियार ने डॉ. भीमराव अंबेडकर से क्यों कही थी ये बात ?

Periyar Vs Gandhi
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Periyar Vs Gandhi – दलितों के उत्थान के दो स्तंभ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और पेरियार ईवी रामासामी हमेशा से चर्चा में रहे. ब्राह्मणवादी मानसिकता पर सवाल उठाने, उस पर कुठाराघात करने में ये नेता सबसे आगे रहे. दोनों की विचारधारा में बहुत अधिक अंतर नहीं रहा लेकिन दोनों के विचार में काफी अंतर देखने को मिला था. दोनों नेताओं की पहली मुलाकात चर्चा में रही थी. वहीं, ये दोनों नेता महात्मा गांधी की विचारधारा से बहुत अधिक सहमत नहीं रहें. इस  लेख में आज हम आपको उस इंसीडेंट से अवगतर कराऊंगा, जब पेरियार ने बाबा साहेब से कहा था कि गांधी के सामने झुकना मत…

पेरियार, गांधी और अंबेडकर – Periyar Vs Gandhi

दरअसल, पेरियार मानते थे कि हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसकी कोई पवित्र किताब नहीं है. न ही कोई एक भगवान हैं जैसे कि दुनिया के दूसरे बड़े धर्मों में है, ना ही इनका कोई ऐसा इतिहास है जैसा यहूदियों और ईसाईयों का है. उनका मानना था कि हिन्दू धर्म मात्र एक काल्पनिक विश्वास पर टिका हुआ है कि ब्राह्मण श्रेष्ठ होते हैं, शूद्र उनके नीचे और बाकी जातियां अछूत होती हैं. जाति के बारे में डा. अम्बेडकर के विचार श्रेणीबद्ध असमानता को आगे बढ़ाते हुए पेरियार ने इसे आत्म सम्मान से जोड़ा और कहा कि जाति व्यवस्था व्यक्ति के आत्मसम्मान का गला घोंट देती है.उनका ‘सेल्फ रेस्पेक्ट आन्दोलन’ इसी विचार से निकला था. वहीं, दूसरी ओर महात्मा गाँधी इस जाति-आधारित धर्म को ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म की तर्ज पर एक मुकम्मल धर्म बनाना चाह रहे थे यानी एक किताब,एक भगवान और एक प्रार्थना वाला धर्म.

मगर महात्मा गांधी अपनी इस कोशिश में जाति व्यवस्था में बिल्कुल भी परिवर्तन लाना नहीं चाहते थे. गांधी की इसी जिद्द के कारण पेरियार उन्हें थोड़ा भी पसंद नहीं करते थे. इसीलिए पूना पैक्ट के दौरान पेरियार ने अंबेडकर को संदेश भेजा था कि किसी भी कीमत पर गांधी के सामने झुकना नहीं है. उनका सीधा कहना था कि गांधी की एक जान से ज्यादा कीमती है करोड़ों दलितों का आत्मसम्मान. पेरियार,कांग्रेस और महात्मा गांधी को लेकर शुरु से ही एग्रेसिव रहे. उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रवाद पर कटाक्ष करते हुए उसे ‘राजनीतिक ब्राह्मणवाद’ कहा था.

पूना पैक्ट क्या है – Poona Pact 1932

ध्यान देने वाली बात है कि 24 सितंबर, 1932 को पूना के यरवादा सेंट्रल जेल में महात्मा गांधी और बाबा साहेब अंबेडकर के बीच समझौता हुआ, जिसे पूना  पैक्ट कहा गया. यह समझौता ब्रिटिश भारत की विधायिका में  समाज के वंचित वर्ग के लिए चुनावी सीटों को आरक्षित करने के लिए किया गया था.Periyar Vs Gandhi

गांधी जी के साथ अंतिम समझौता सत्र में, अम्बेडकर हाशिए के उम्मीदवारों के लिए एक संयुक्त निर्वाचक मंडल बनाने पर सहमत हुए. इसके अलावा, दलित वर्गों के लिए विधायिका में 180 से अधिक सीटें आरक्षित की गईं. पूना पैक्ट 1932,समाज के दबे-कुचले वर्ग के उचित प्रतिनिधित्व और सार्वजनिक क्षेत्र में उनके योगदान पर भी प्रकाश डालता है. यह उनकी राजनीतिक आवाज को भी मजबूत करता है और समाज के उत्पीड़ित वर्ग के लिए उचित अवसर पैदा करता है.

आपको बता दें कि पूना पैक्ट सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ में एक क्रांतिकारी कदम था.यह दलितों के हितों को सुरक्षित करने के लिए हिंदू नेताओं के बीच एक समझौता था, इसने वंचित वर्ग की नियति बदल दी.1932 का पूना समझौता भी समाज के दबे-कुचले वर्ग के उचित प्रतिनिधित्व और सार्वजनिक सेवा क्षेत्र में उनके योगदान पर प्रकाश डालता है.इसके अलावा, गांधी और अंबेडकर के बीच पूना पैक्ट ने भारत में एक समतावादी समाज की स्थापना के लिए गांधी और अंबेडकर के विभिन्न दर्शनों को भी प्रदर्शित किया.

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