दलितों की ऐसी ही एक क्रांति है, जिसे हूल क्रांति के नाम से जाना जाता है.
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हर साल 30 जून को हूल दिवस मनाया जाता है. यह क्रांति 1855 में भड़की थी, जिसका नेतृत्व आदिवासी वीर सिद्धों कान्हों ने किया था.
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आदिवासियों ने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ सशस्त्र लड़ाई लड़ी थी और इसमें क़रीब 20 हज़ार आदिवासियों की जानें गई थी.
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इस क्रांति का नारा था- 'करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो'. आंदोलन के शुरुवात के साथ ही आदिवासियों ने अंग्रेजों के आँखो में आँखें डालकर बोल दिया था
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वे अब लगान नहीं देंगे. इसके बाद अंग्रेजों ने सिद्धू, कान्हू को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.
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जिस दरोगा को गिरफ्तार करने के लिए वहां भेजा गया था, संथालियों ने उसकी गर्दन काट दी थी.